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पत्र :'नेटाल एडवर्टाइजर 'को


हम कामना करते हैं कि महानुभावके और लेडी हेली-हचिन्सनके लिए इस उप-निवेशका वास समस्त सुख और समृद्धिदायक हो!

आपके अत्यन्त आज्ञाकारी सेवक,
दादा अब्दुल्ला[१]दाऊद मुहम्मद
एम° सी° कमरुद्दीन[२]आमद जीवा
आमद टिल्लीपारसी रुस्तमजी
ए° सी° पिल्लै

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, ३०-९-१८९३

 

२९. पत्र : 'नेटाल एडवर्टाइजर' को

प्रिटोरिया
२९ सितम्बर, १८९३

सेवामें
सम्पादक
'नेटाल एडवर्टाइजर'
महोदय,

निवेदन है कि कृपया अपने पत्र में निम्नलिखित स्पष्टीकरण प्रकाशित करें:

आपने अपने १९ तारीखके अंकमें भावी एशियाई-विरोधी संघके लिए जो कार्यक्रम प्रस्तुत किया है, उसका विस्तृत उत्तर देना बहुत बड़ा काम है और उसे सम्पादकके नाम पत्रकी मर्यादामें नहीं निभाया जा सकता। फिर भी मैं चाहता हूँ कि आपकी अनुमतिसे केवल दो मुद्दोंका उत्तर दे दिया जाये। वे मुद्दे हैं — यह भय कि "कुलियोंके मत यूरोपीयोंके मतोंको निगल जायेंगे", और यह मान्यता कि भारतीयोंमें मत देनेकी योग्यता नहीं है।

आरम्भमें, मैं अनुरोध करूँगा कि आप अपनी सद्भावना और न्यायप्रियतासे, जो ब्रिटिश राष्ट्रका लाक्षणिक गुण मानी जाती है, काम लें। अगर आप और आपके पाठक प्रश्नके एक ही पहलूको देखनेका संकल्प कर बैठे तो मैं कितने भी तथ्य या तर्क पेश करूँ, आपको या उनको मेरी बातोंकी न्यायपूर्णताका विश्वास न होगा। सारे मामलेको सही रूपमें समझने के लिए ठंडे दिलसे निर्णय करने और राग-द्वेष रहित तथा निष्पक्ष जाँच करनेकी अनिवार्य आवश्यकता है।

 
  1. डर्बन की प्रमुख भारतीय पेढ़ी 'दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनी' के मालिक; जिनके मुकदमे के सिलसिले में ही गांधीजी दक्षिण आफ्रिका गये थे।
  2. जोहानिसबर्गके एक भारतीय व्यापारी और नेटाल इंडियन कांग्रेसके सक्रिय सदस्य।

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