पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या यह खींच-तानकर बनाया हुआ खयाल नहीं मालूम होता कि भारतीयोंके मत यूरोपीयोंके मतोंको कभी भी निगल सकते हैं। सरसरी तौरपर देखनेवाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि यह कभी सम्भव नहीं है। मताधिकारके लिए आवश्यक सम्पत्तिकी योग्यता इतने भारतीयोंमें कदापि नहीं हो सकती कि उनके मत यूरोपीयोंके मतोंसे अधिक हो जायें।

भारतीय लोग व्यापारियों और मजदूरोंके दो वर्गों में बँटे हुए हैं। मजदूरोंकी संख्या तुलनामें बहुत बड़ी है और साधारणत: उन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं है। वे दरिद्रताके मारे हैं और अधपेट मजदूरीपर नेटाल आये हैं। क्या वे मताधिकारकी योग्यता प्राप्त करने योग्य पर्याप्त सम्पत्ति रखनेका स्वप्न भी कभी देख सकते हैं ? और अगर यहाँ कुछ दिन भी स्थायी रूपसे रहनेवाले भारतीय हैं ही, तो वे इसी वर्गके हैं। किसान वर्गके केवल थोड़े-से लोगोंको सम्पत्ति-सम्बन्धी योग्यता प्राप्त है। परन्तु वे स्थायी रूपसे नेटालमें रहते नहीं। और जो लोग कानूनन मत देनेके अधिकारी है, उनमें बहुत-से उसकी कभी परवाह नहीं करते। वर्गगत रूपसे भारतीय अपने देशमें भी कभी अपने सब राजनीतिक अधिकारोंका लाभ नहीं उठाते । वे अपने आध्यात्मिक कल्याणके विचारोंमें इतने मग्न रहते हैं कि राजनीतिमें सक्रिय भाग लेनेका विचार ही नहीं कर सकते। उनमें कोई बहुत बड़ी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ नहीं होती। वे यहाँ राजनीतिज्ञ बनने नहीं, ईमानदारीके साथ अपनी रोटी कमाने आते है और अगर उनमें से कुछ लोग पूरी ईमानदारीके साथ उसे नहीं कमाते तो यह खेदकी बात है। तो फिर, इससे स्पष्ट है कि भारतीयोंके मतोंके अशुभ परिमाण ग्रहण कर लेनेकी सारी आशंकाका आधार गलत है।

और जिन थोड़े-से मतोंपर भारतीयोंका अधिकार है वे नेटालकी राजनीतिको किसी भी रूपमें प्रभावित नहीं कर सकते। भारतीयोंके प्रतिनिधित्वकी चीख-पुकार करनेके लिए किसी एक भारतीय दलका संगठन करनेकी सारी चर्चा हवाई मालूम पड़ती है, क्योंकि चुनाव तो सदैव दो गोरे लोगोंके बीच ही होगा। तो फिर, क्या भारतीयोंके कुछ मत होनेसे बहुत-कुछ बन-बिगड़ जायेगा? उन थोड़े-से मतोंसे ज्यादासे- ज्यादा यह हो सकता है कि कोई पूर्ण श्वेत व्यक्ति चुनकर आ जाये, जो अगर अपने वचनके प्रति सच्चा रहे तो, विधान-सभामें उनकी अच्छी सेवा करे। और जरा कल्पना तो कीजिए, ऐसे एक-दो सदस्योंके बने भारतीय दलको !

वे, या यों कहिए कि वह तो लोगोंका मत-परिवर्तन करनेकी विद्युत-शक्ति या, शायद कहना अनुचित न होगा, दिव्य शक्तिसे रहित, अरण्यरोदन करनेवाला प्रत्यक्ष सन्त जॉन' ही होगा। शाही संसदमें विविध प्रकारके छोटे-छोटे हितोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले छोटे-छोटे किन्तु प्रबल दल भी बहुत कम असर डाल पाते हैं। वे कुछ प्रश्नोंसे प्रधान-मन्त्रीको परेशान करके अगले दिनके पत्रों में अपने नाम छपनेका संतोष-भर जरूर मान सकते है।

१.ईसाको बपतिस्मा देनेवाळे सन्त, जोन द बैपटिस्ट ।