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पत्र : 'नेटाल एडवर्टाइजर' को


फिर आपका खयाल है कि भारतीय लोग मत देनेके लिए जितने चाहिये उतने सभ्य नहीं हैं; वे आदिवासियोंसे शायद बेहतर नहीं होंगे, और निश्चय ही, सभ्यताके मापदंडमें वे यूरोपीयोंके बराबर नहीं हैं। यह हो सकता है। किन्तु यह सब सभ्यता शब्दकी व्याख्यापर निर्भर है। इस विषयकी जाँच करनेसे जो प्रश्न उठ सकते हैं उन सबकी पूर्ण चर्चा करना संभव नहीं है। फिर भी, मुझे यह कहनेकी इजाजत दी जाये कि भारतमें वे इन विशेषाधिकारोंका उपभोग करते हैं। सम्राज्ञीकी १८५८ की घोषणा — जिसे ठीक ही "भारतीयोंका मैग्ना कार्टा" — कहा जाता है इस प्रकार है:

हम अपने-आपको अपने भारतीय प्रदेशके निवासियोंके प्रति कर्त्तव्यके उन्हीं दायित्वोंसे बँधा हुआ समझते हैं, जिनसे हम अपनी दूसरी प्रजाओंके प्रति बंधे हैं। और सर्वशक्तिमान् परमात्माको कृपासे हम उन दायित्वोंका सदसद्विवेक-बुद्धि और श्रद्धाके साथ निर्वाह करेंगे। और इसके अतिरिक्त हमारी यह भी इच्छा है कि हमारे प्रजाजन अपनी शिक्षा, योग्यता और ईमानदारीसे हमारी जिन नौकरियोंके कर्त्तव्य पूर्ण करनेके योग्य हों उनमें उन्हें जाति और धर्मके भेदभाव के बिना मुक्त रूप और निष्पक्ष भावसे सम्मिलित किया जाये।

मैं भारतीयोंसे सम्बन्ध रखनेवाले इसी तरहके और भी उद्धरण पेश कर सकता हूँ। परन्तु मुझे लगता है कि मैं इतनेमें ही आपके सौजन्यका बहुत अधिक उपयोग कर चुका हूँ। फिर भी मैं इतना तो कह दूं कि कलकत्ता उच्च न्यायालयका स्थानापन्न प्रधान न्यायाधीश एक भारतीय रहा है; एक भारतीय इलाहाबादके उच्च न्यायालयका न्यायाधीश है, और यहाँके भारतीय व्यापारी सामान्यतः उसके सहधर्मी हैं। और एक भारतीय ब्रिटिश संसदका सदस्य है। इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार अनेक दृष्टियोंसे महान् अकबरके कदमोंपर चलती है। अकबर बादशाह तो सोलहवीं शताब्दी में हुआ था। वह एक भारतीय था। आजकी भूमि-नीति महान् वित्त-विशारद टोडरमलकी नीतिका अनुकरण मात्र है। उसमें सिर्फ थोड़ा-सा फेरफार कर लिया गया है। वह टोडरमल भी भारतीय ही था। अगर यह सब सभ्यताका नहीं, बल्कि अर्ध-बर्बर-ताका परिणाम है, तो मुझे अभीतक यह नहीं मालूम कि सभ्यताका अर्थ क्या है?

अगर उपर्युक्त सब तथ्योंके होते हुए भी आप वैमनस्यको बढ़ावा दे सकते हैं, और समाज के यूरोपीय अंगको भारतीय अंगके विरुद्ध काम करनेके लिए भड़का सकते हैं, तो आप महान् हैं।

आपका,

मो° क° गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल एडवर्टाइजर, ३-१०-१८९३