पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७३
लन्दन-संदर्शिका

उद्देश्य बनाना चाहते हैं, जो इन यात्राओंके सम्बन्धमें पुस्तकें लिखना चाहते हैं उन्हें यात्राके विशेष उद्देश्यसे ही वहाँ जाना चाहिए। पर मुझे लगता है कि ऐसे लोगोंको चाहिए कि वे पहले अपना देश तो देख लें। इस विषयमें श्री मलबारीके विचार उद्धृत करना बहुत उचित होगा।

अध्ययनकी तरह यात्रा भी बिलकुल शुरूसे सीखना सर्वोत्तम है। उसके बाद धीरे-धीरे आगे कदम बढ़ायें। हर कदमपर ऐसा कुछ सीखते चलें जिससे अगले कदमपर तत्काल ही व्यावहारिक लाभ मिल सके। जब हम यात्रा या अध्ययन सूक्ष्मतासे करते हैं तो हर नया कदम या किसी बातका ज्ञान हमें बेहद आनन्द देता है। हम उसे समझनेके लिए तैयार हो जाते है और इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान हमारे लिए लाभदायक होता है। लेकिन जब ज्ञान बिना किसी तैयारीके थोप दिया जाता है अर्थात् जब हममें उसे पानेकी योग्यता नहीं होती तो ऐसे जड़-ज्ञानमें फल देनेकी कोई शक्ति नहीं होती। यदि हमें अपने देशके बारेमें ही कुछ न मालूम हो तो विदेश यात्रा करनेका क्या लाभ होगा? यदि हम अपने ही राष्ट्रीय जीवनको जाने बिना यूरोप जायें तो हम आधुनिक यूरोपीय सभ्यताकी सैकड़ों छोटी-छोटी बातों, विभिन्न विचारों, हजारों अच्छाइयों-बुराइयोंकी पहचान और अपने जीवनसे उनकी तुलना कभी नहीं कर पायेंगे। बहुत हुआ आप इन सब चीजोंको देखेंगे; किन्तु उन्हें कहीं समझ पायेंगे, कहीं नहीं समझ पायेंगे।

इन बुद्धिमत्तापूर्ण शब्दोंपर गम्भीरतासे विचार करना चाहिए। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि हमें काम गलत छोरसे शुरू नहीं करना चाहिए।

सबसे आखिरमें शिक्षाकी बारी आती है। मुझे अत्यन्त खेदके साथ यहाँ कहना पड़ रहा है कि शिक्षाके लिए इंग्लैंड जानेवाले लगभग सभी व्यक्ति बैरिस्टर बननेके इरादेसे जाते हैं। शिक्षाका अर्थ बैरिस्टर बनना ही नहीं है। बैरिस्टरोंके बारेमें एक अलग अध्यायमें मैं बहुत-कुछ कहनेवाला हूँ, इसलिए यहाँ सिर्फ मैं उन दूसरे कामोंका उल्लेख कर रहा हूँ जो वहाँ सीखे जा सकते हैं। बेशक, लोगोंको सबसे ज्यादा लालच तो प्रशासन सेवाकी परीक्षा पास करनेका होता है। लेकिन उसमें वही बैठ सकते हैं जो जन्मत: ब्रिटिश प्रजा हैं। एक दूसरा काम इंजीनियर बननेकी शिक्षा है, जिसके लिए हम कूपर्स हिल कॉलेजमें भर्ती हो सकते हैं। चिकित्सा-शास्त्रकी सबसे बड़ी परीक्षा लन्दन विश्वविद्यालयमें पास की जा सकती है। बड़े-बड़े प्रसिद्ध डाक्टरोंने वहाँ शिक्षा पाई है, लेकिन उसका पाठ्यक्रम बहुत लम्बा है; यों कहनेको तो उसमें पाँच ही वर्ष लगते हैं। किन्तु वास्तवमें लगभग सात वर्ष लग जाते हैं। ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयोंमें शिक्षाकी बहुत अच्छी व्यवस्था है। लेकिन ये विश्व-विद्यालय धनिक वर्गके लिए हैं, गरीबोंके लिए नहीं। यहाँ जो शिक्षा दी जाती है वह भारतीय विश्वविद्यालयोंसे भिन्न प्रकारकी है। हमारे विश्वविद्यालयोंकी तरह वहाँ बहुत परिश्रम भी नहीं करवाया जाता। फिर भारतमें तो सामान्यतः सिर झुका-कर काम ही करते रहना पड़ता है और जैसे अंग्रेजीकी कहावत है, बिना मनोरंजनके