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लन्दन-संदर्शिका

सर्दियोंमें ज्यादा काम नहीं करते? तब इस बारे में सन्देह नहीं हो सकता कि काम करनेका इच्छुक व्यक्ति इंग्लैंडमें भारतसे ज्यादा काम कर पायेगा। इंग्लैंडमें रहते हुए सब समय अंग्रेजी भाषामें बातचीत करनेकी जो सुविधा मिलती है उसका उल्लेख करनेकी तो जरूरत ही नहीं है। मेरी हार्दिक आशा है कि उक्त कथनके विरोधमें ऐसे व्यक्तियोंका उदाहरण नहीं दिया जायेगा जिन्होंने कोई बहुत बढ़िया काम नहीं कर दिखाया। क्योंकि वे तो काम करनेके अनिच्छुक व्यक्तियोंकी श्रेणीमें आते हैं, जब कि हम तो यहाँ उन व्यक्तियोंकी चर्चा कर रहे हैं जो भारतमें नहीं, इंग्लैंडमें कामके ज्यादा अवसर खोज रहे हैं। मूर्ख इंग्लैंडसे पण्डित बनकर लौटेंगे, यह आशा करना तो ज्यादती है। वहाँ ज्यादा अच्छे अवसर मिल सकते हैं और उनका लाभ उठाना आपका काम है। यदि आप ऐसा नहीं करते, तो दोष आपका है, इंग्लैंडका नहीं। यदि इंग्लैडमें ज्यादा अच्छी शिक्षा पाना सम्भव है, तो इसका यही तात्पर्य हुआ कि वह भारतसे ज्यादा महँगी नहीं पड़ती, क्योंकि अधिक खर्चके अनुपातमें शिक्षा भी तो उतनी ही अच्छी मिलती है।

अध्याय २

प्रारम्भिक तैयारी

किन लोगोंको इंग्लैंड जाना चाहिए, यह मैं पिछले अध्यायमें बता चुका हूँ। अब मै, जानेसे पहले क्या तैयारी करनी पड़ती है, उसका वर्णन करता हूँ। इस विषयमें बताते समय यदि मैं ब्योरेकी बहुत मामूली और छोटी-छोटी बातोंकी भी चर्चा करूँ तो आशा है कि उसे पाठक अन्यथा नहीं लेंगे। इसमें मैंने अपनी बुद्धिको या उससे भी कम बुद्धिको अपना पैमाना माना है और मैं उन बातोंका वर्णन करूँगा जिनका स्पष्टीकरण मुझे मेरे इंग्लैंड जानेके समय आवश्यक हुआ था।

सबसे पहला सवाल द्रव्यका है। अपने साथ कितना पैसा ले जाना चाहिए, यह बादमें बताया जायेगा। पर जितनी भी राशि हो, मनुष्यको यह बात पक्के तौरपर देख लेनी चाहिये कि निश्चित की हुई सारी राशि उसे इंग्लैंडमें मिल जायेगी। कुछ परिस्थितियोंमें तो पूरीकी-पूरी राशि साथ ले जाना ही ठीक होगा। मैं अपने निजी अनुभवसे जानता हूँ कि कुछ ऐसे लोग भी जिन्हें आप पूरी तरह भरोसेके योग्य मानते हैं आर्थिक सहायताका वचन देकर अपनी बातसे फिर जाते है और यह भी उस हालतमें जब सहायता ऋणके रूपमें मांगी गई हो, उपहारके रूपमें नहीं।'जो आपको ऋण देनेके लिए भी तैयार हो जायें, आम तौरपर लन्दन में ऐसे लोग नहीं मिलते। साधारणत: ऋण भी काफी बड़ा लेना होता है; क्योंकि जब वादेके मुताबिक पैसा नहीं मिल पाता तो जरूरत थोड़े पैसोंकी नहीं, काफी ज्यादाकी पड़ जाती है और आप किसी मित्रसे इतना उधार दे पानेकी आशा नहीं कर सकते । मुझे और मेरे मित्रोंको इसका अनुभव हो चुका है कि किसी भी भारतीयके लिए

१. देखिए सत्यना प्रयोगो अथवा आत्मकथा, भाग १, अध्याय १३ तथा “फ्रेडरिक छेलोको लिखे पत्रका मसविदा", दिसम्बर १८८८ ।