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लन्दन-संदर्शिका

एक बार सार्वजनिक स्नानगृहमें नहाने जाते हैं; वहाँ नहानेके लिए ६ या ४ पेंस देने पड़ते हैं। लेकिन आप जहाँ भी रहें वहीं बिना किसी खर्चके प्रतिदिन स्नान कर सकते हैं। आपके अनुरोधपर मकान मालकिन हमेशा सुबह दो-तीन लोटे गर्म पानी जरूर दे देगी। आप उतने पानीसे शरीर पोंछ सकते हैं। आप पानी बर्तनमें डाल दें, उसमें स्पंज भिगो कर उससे शरीरको कसकर दो-तीन बार पोंछ लें, फिर सूखे तौलियेसे रगड़ लें। बस आपने अच्छी तरह नहा लिया। आप स्पंजके उपयोगके बदले सिर्फ हाथोंसे भी यही कर सकते हैं। इससे शरीरमें चमक आ जायेगी; वह साफ हो जायेगा। इस दैनिक स्नानके अतिरिक्त आप पन्द्रह दिन या महीने में एक बार सार्वजनिक स्नानगृहमें नहाने भी जा सकते हैं। मकान मालकिन हर सप्ताह दो तौलिए देती है। कमरा किरायेपर लेनेसे पूर्व ये सब बातें मकान मालकिनसे तय कर लेनी चाहिए, ताकि भविष्य में गलतफहमी न हो। जब भी आप कमरा किराये पर लेने जायें, मकान मालकिनको समझा दें कि साप्ताहिक किरायेमें आप क्या-क्या शामिल करना चाहते हैं। सामान्यत: किरायेमें जूता-पालिश, चादरें, तौलिए, कुछ काम-काज, सुबह गर्म पानी देना आदि शामिल किये जाते हैं।

साधारणत: लोग समझते हैं कि वहाँ कड़ी सर्दीके कारण रोज नहा नहीं सकते;ऐसा कहना सही नहीं है। उलटे अच्छे स्वास्थ्यके लिए रोज स्नान करना जरूरी मेरी पहचानकी एक मकान मालकिनने तो अपने किरायेदारको सिर्फ इसलिए भगा दिया कि वह रोज नहाता नहीं था। वह अकसर कहा करती थी: "धार्मिकता-के बाद स्वच्छताका दर्जा है।" चाहे कितनी ठण्ड हो वह इस बातका पूरा ध्यान रखती थी कि उसके यहाँ हर व्यक्ति सुबह जरूर स्नान करे।

स्नानके बाद आता है आने-जानेका खर्च। यह प्रति सप्ताह ६ पेंससे ज्यादा नहीं होना चाहिए। जहाँ काम करना है उसके आसपास रहनेसे रोजके आने-जानेका खर्च तो बच जाता है, पर रविवारको कुछ मित्रोंसे मिलने जाना जरूरी हो सकता है और कुछ पैसे उसमें लग सकते हैं। यह भी सम्भव है कि किसी सप्ताह आवश्यक होनेपर आप एक शिलिंग खर्च कर डालें और अगले सप्ताह कुछ भी खर्च न करें। लेकिन जब भी सम्भव हो, पैदल जाना सबसे अच्छा रहता है ताकि कसरत भी हो जाये और साथ ही पैसा भी बचे। इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है? इंग्लैंडमें कई लोग जानबूझ कर ऐसा करते हैं। सो भी थोड़ा बहुत पैसा बचानेके विचारसे नहीं, व्यायामके विचारसे। इंग्लैडकी ठंडी जलवायुमें तीन या चार मील चलने में मजा आता है। जब कभी सम्भव हो, गाड़ीमें या बसमें जानेकी बजाय चुस्ती-से पैदल जाना पसन्द करें। गाड़ीमें या बसमें जाना कई बार हानिकर भी सिद्ध होता है। एक बार मैं बसमें बैठा-बैठा सचमुच जकड़-सा गया। बसमें टिकट देने वाले इस खतरेसे वाकिफ हैं। वे बीच-बीचमें बसके साथ भाग लेते हैं और थोड़ी गर्मी आ जानेपर बसमें चढ़ जाते हैं।

औसतन हर सप्ताह ६ पेंस टिकटोंके लिए अलग रखे जा सकते हैं। यों इतनी रकमकी आवश्यकता नहीं है।