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लन्दन-संदर्शिका

जाने के बजाय पन्द्रह दिनमें (खासकर सर्दीमें) एक बार जायें। इसी तरह कभी-कमी आने-जानेपर बिलकुल खर्च न करें। उसको हमने गिन तो लिया है पर जरूरी नहीं है कि उसके लिए रखे पैसे खर्च ही किये जायें। हमारा उद्देश्य यही होना चाहिए कि आरामसे रहते हुए हम औसतन सप्ताहमें एक पौंडसे ज्यादा खर्च न करें।

रहनेके खर्चसे सम्बन्धित इस चर्चाका यह अंश उतना विवादास्पद नहीं है, जितना भोजन सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण अंश है। अब हम उसको लेते हैं।

प्रश्नके इस पहलूपर बहुत कुछ कहा जा सकता है। उसके सम्बन्धमें बहुत-से पूर्वग्रह और गलतफहमियाँ है; उन्हें दूर करनेकी जरूरत है। इस प्रश्नपर विस्तार-पूर्वक विचार करना हो तो एक अलग और बड़ी पुस्तक लिखनी पड़ेगी।

हमारे सामने सवाल यह है कि हर सप्ताह ९ शिलिंगमें अच्छा, पौष्टिक और रुचिकर भोजन कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

शुरूमें ही यह कह देना ठीक होगा कि इस रकमसे उन्हीं लोगोंका काम चल सकता है जो जीनेके लिए खाते हैं; उन लोगोंका नहीं जो खानेके लिए जीते हैं। जिन्हें स्वादिष्ट भोजन चाहिए, जो अकेले खाना नहीं खा सकते हैं, जो रोज मित्रोंको बुलाकर पकवान खिलाना चाहते हैं, जो पेटूकी तरह रहना चाहते हैं, उनके लिए इससे दस गुनी रकम भी पर्याप्त न होगी। यदि आप कम खर्च करते हुए प्रसन्नतापूर्वक रहना चाहते है और ठाठसे नहीं रहना चाहते हैं तो ९ शिलिंग प्रति सप्ताह कम नहीं हैं।

मेरा पाठकोंसे हार्दिक अनुरोध है कि वे मनसे सब पूर्व धारणाएँ, सब पूर्वग्रह निकाल दें; तब मुझे विश्वास है कि वे स्वयं यह देख सकेंगे कि ९ शिलिंग प्रति सप्ताह भोजनके लिए पर्याप्त हैं। उससे स्वास्थ्यको कोई हानि नहीं होगी, बल्कि वह अधिक ठीक रहेगा।

उदाहरण देनेसे बात जितनी स्पष्ट होती है, उतनी और किसी बातसे नहीं; इसलिए कोई भी मितव्ययी व्यक्ति जिसका जन्म धनी परिवारमें न हुआ हो या कहिए जिसने विलासमय जीवन न बिताया हो, प्रति सप्ताह एक पौंड खर्च कर अच्छी तरह निर्वाह कर सकता है, अपने इस कथनके समर्थनमें मैं कुछ उदाहरण दूंगा। इंग्लैंड में हजारों व्यवसायी सज्जन प्रति सप्ताह एक पौंडमें निर्वाह करते हैं। एक आंग्ल-भारतीयसे मेरी बात हुई। उन्होंने मुझे बताया कि वह १ पौंड खर्च करते हैं। एक सज्जन हैं, जो एम० ए०, बी० ई० एल० बैरिस्टर है; वे प्रति सप्ताह १० शिलिंग खर्च किया करते थे और अभीतक सप्ताहमें एक पौंडसे भी कम खर्चमें निर्वाह करते हैं। वे एक समाचारपत्रके सम्पादक हैं और मैंने उन्हें दिनमें सोलह घंटे या उससे भी ज्यादा समय काम करते देखा है। जब मैं उनसे अन्तिम बार मिला, उन दिनों वे रोटी, अंजीरों और पानीपर ही रह रहे थे।

कई आयरिश संसद सदस्य प्रति सप्ताह एक पौंडमें निर्वाह करते हैं। इनमें से कुछ तो सर्वश्रेष्ठ वक्ता है। मेरा विचार है कि संसद सदस्य स्वर्गीय श्री बिगर सप्ताहमें एक पौंड खर्च किया करते थे।