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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और चार्ल्स ब्रेडला क्या करते थे? श्रीमती एनी बेसेंट उनके बारेमें लिखती है :

उन्होंने अपनी पुस्तकोंके सिवा सब-कुछ बेच दिया। अपना वह घर बेच दिया जिसे उन्होंने परिश्रमसे कमाया हुआ धन लगाकर बनाया था। फर्नीचर बेच दिया, होरेको वह अंगूठी तक बेच दी, जो किसी व्यक्तिने उनकी सहायताके लिए आभार व्यक्त करने के लिए उन्हें दी थी। उन्होंने बच्चोंको स्कूल भेज दिया। उनकी पत्नी अपने माता-पिताके घर चली गई, क्योंकि उसमें ऐसा जीवन सहन करने लायक शारीरिक शक्ति नहीं थी। उन्होंने टर्नर स्ट्रोट,वाइट चैपलमें दो कमरे किरायेपर लिये, जिनका साप्ताहिक किराया वे ३ शि० ६ पेंस देते थे और जबतक उन्होंने अपना अधिकांश कर्ज अदा नहीं कर दिया वे इन्हीं कमरों में रहे। इसके बाद वे सर्कस रोड, सेंट जॉन्स वुडपर स्थित एक संगीतकी दूकानके ऊपरी भागमें रहने लगे और जिन्दगीके बाकी दिन वहीं बिताये। १८७७ में अपनी माँको मृत्युके बाद उनकी बेटियाँ उनके पास चली आई...जब उनकी मृत्यु हुई, तब वे निर्धन ही थे, उनकी कोई व्यक्ति-गत सम्पत्ति नहीं थी, सिर्फ उनका पुस्तकालय, उनके भारतीय उपहार और पहनने के मामूली कपड़े ही बचे थे। पर उनके नामपर कोई कलंक और कीर्तिपर कोई बट्टा नहीं था।

और उन्होंने १० शिलिंग प्रति सप्ताहपर काम करना शुरू किया था; यह हम सब जानते हैं कि उनकी बुद्धि कितनी तेज और उनका शरीर कितना बलवान था। यदि कार्डिनल मैनिंगके बारे में जो कुछ लिखा गया है वह सही हो तो जहाँतक भोजनका सवाल है, वे उसपर ९ शिलिंग प्रति सप्ताहसे ज्यादा खर्च नहीं करते थे।

अब एक ऐसे व्यक्तिका उदाहरण लें जो प्रसिद्ध है और जीवित है। इंग्लैंडमें आर्चबिशप मैनिगसे अधिक परिश्रमी व्यक्ति कम ही होंगे। उनके जीवनमें चिन्ताएँ और कठिनाइयाँ भरपूर है। लेकिन जिन लोगोंका उनसे बहुत निकटका व्यक्तिगत सम्पर्क है, उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया है कि 'लोथेर' में श्री डिजराइलीने इनके स्वाभाविक मिताहारका जो वर्णन किया है उसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है। साधारणतः उनके भोजनमें बिस्कुट या रोटी-का टुकड़ा और पानीका गिलास होता है, फिर चाहे वे एकान्तमें खायें या सबके सामने।

यह तो प्रसिद्ध ही है कि वे शराब छूते तक नहीं हैं।

डा० निकोलस जिनकी पुस्तकसे उपर्युक्त उद्धरण दिया गया है, दिनमें भोजन पर ६ पेंस (प्रति सप्ताह ३ शि०६ पेंस) से ज्यादा खर्च नहीं करते थे और शायद अब भी नहीं करते। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है 'हाउ टु लिव ऑन सिक्स पेंस ए डे'। किफायतसे रहनेके इच्छुक सभी व्यक्तियोंको यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए, उसमें उन्होंने बड़े मजेदार ढंगसे अपने प्रयोगका वर्णन किया है।