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लन्दन-संदर्शिका

इस विषयपर बहुत-सी किताबें लिखी गई है। एक किताबका शीर्षक है 'हाउ टु लिव ऑन वन पौंड ए वीक ।' इसमें रहने, कपड़े, भोजन आदि सबकां खर्च शामिल है।

यहाँतक कि एक सज्जनने तो भोजनके साप्ताहिक खर्च में एक शिलिंग तक कम करनेकी चेष्टा की है और इस विषयपर पुस्तक लिखी है। हमने तो भोजनके लिए इससे नौ गुनी रकम रखी है।

इन सब उदाहरणोंसे स्पष्ट हो जायेगा कि १ पौंडमें सप्ताहका खर्च चलाना सम्भव है और कई लोग इसमें सफल हुए हैं।

कोई पूछ सकता है कि क्या किसी भारतीयने ऐसा किया है। हाँ, एक सज्जनने जो पंजाबमें जज है, ऐसा किया है। जिन दिनों में इंग्लैंडमें था, वे छुट्टीपर बैरि-स्टरीकी शिक्षाके लिए आये। उनकी आयु चालीस वर्षके ऊपर होगी और इंग्लैंडमें उनका बेटा उनके साथ था। उन्होंने बताया कि उनका वेतन १५० रुपये है जिसमें से ५० रुपये वे अपनी पत्नीको घर भेजते हैं और पचास रुपये अपने और लड़केके लिए लन्दनमें खर्च करते हैं। इसका अर्थ हुआ महीने के लिए ३३ पौंड अर्थात् दो व्यक्तियों-के लिए १ पौंडसे भी कम साप्ताहिक खर्च। इस कम रकसमें उन्होंने छोटी-छोटी और कई चीजें भी शामिल कर ली थीं जिनका हमने १ पौंडमें हिसाब नहीं लगाया।

गुजरातके एक अन्य भारतीय सज्जन सप्ताहमें १० शिलिंगसे भी कम खर्च करते थे और लगता था कि वे काफी आनन्दसे है। वे अपने मित्रके साथ जिस कमरेमें रह रहे थे उसका किराया ४ शि० था। इस तरह उन्हें निवासस्थानके लिए सिर्फ २ शि० देना पड़ता था। ये सज्जन इंग्लैंडमें चिकित्साशास्त्रका अध्ययन कर रहे थे। साधु नारायण हेमचन्द्र १ पौंडमें सप्ताहका खर्च चलाते हैं। उनके कमरेका साप्ताहिक किराया ६ शिलिंग है । वे हर हफ्ते ३ या ४ पेंस धुलाईके लिए और ७ शि० भोजनके लिए खर्च करते हैं। वे बहुत परिश्रम करते हैं, अपने पत्र में वे लिखते है कि अब उन्होंने जर्मन, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाएँ सीख ली है। सप्ताहमें एक पौंड खर्च करते हुए वे उसीमें से अपने कपड़े और किताबें भी खरीद लेते हैं। उनकी किताबोंका एक बक्सा तो मैं भारत ले आया था। अबतक तो उन्होंने फिरसे ज्यादा नहीं तो कमसे-कम उतनी किताबें जरूर खरीद ली होंगी।

एक सज्जन, जो अभी हाल ही में इंग्लैंड गये हैं, लिखते हैं:

हो सकता है कि मेरे पिछले पत्रको पढ़कर आप मेरे विषयमें कोई अच्छी धारणा न बना पाये हों। मैं स्वयं अपने उस समयके रहन-सहनसे ज्यादा सन्तुष्ट नहीं हूँ। लेकिन आप जानना चाहते थे कि मैं किस तरह निर्वाह कर रहा हूँ। इसलिए मुझे अपने सच्चे विचार लिखने पड़े। तबसे लेकर धीरे-धीरे बहुत परिवर्तन हो गया है। जिसे मैं असम्भव मानता था वह अब व्यवहारतः सम्भव हो गया है। महीने-भरमें ६ पौंड खर्च करना अब एक

१.देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय २२ ।