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लन्दन-संदर्शिका

इसलिए इस तखमीनेके अनुसार शराब और तम्बाकू छोड़ देना बिलकुल जरूरी है और चाय और काफी भी छोड़ दें, तो अच्छा होगा। क्योंकि उनका उपयोग करनेसे उनकी अपेक्षा बहुत अधिक पौष्टिक पेय, दूध छोड़ना पड़ता है।

अब हम मांसके प्रश्नपर आते है। मुझे लगता है कि यदि ९ शिलिंगसे इस प्रकार निर्वाह करना है कि स्वास्थ्यको कोई हानि न हो तो मांसाहार छोड़ देना होगा। कोई पूछ सकता है कि ऐसी हालतमें मुसलमान और पारसी क्या करेंगे,उनके लिए तो यह संदर्शिका बेकार है ! थोड़ा रुकें। मैं पूछता हूँ क्या ऐसे बहुतसे मुसलमान और पारसी भाई नहीं हैं जो निर्धन होनेके कारण कभी-कभार मांस खा पाते हैं। और कुछ-एक तो कभी नहीं खा पाते। ऐसे व्यक्ति क्या मांसके बिना रह नहीं सकते? भारतमें भी तो उन्हें अपने धर्म या सिद्धान्तके कारण नहीं, बल्कि पैसा कम होनेके कारण मांस कभी-कभी ही नसीब होता है। वे कहीं मिलनेपर मांस खा सकते हैं, जैसे जिस विद्यार्थी-निवासमें वे बैरिस्टरीकी शिक्षा प्राप्त करनेके लिए दाखिल हुए हैं, वहाँ खा सकते हैं। यदि यह सच है कि स्वास्थ्यकी कोई भी हानि हुए बिना शाकाहारसे निर्वाह किया जा सकता है, तो फिर सभी लोग शाकाहारसे निर्वाह क्यों न करें और जब कि ऐसा करनेसे मांसाहारकी अपेक्षा खर्च कम होता हो । इंग्लैंडमें शाकाहारका प्रचलन है इसे सिद्ध करने के लिए आजके कई शाकाहारियोंके उदाहरण दिये जा सकते हैं।

वहाँ कई शाकाहारी समितियाँ हैं और तत्सम्बन्धी साहित्य भरा पड़ा है; यह इंग्लैंडमें शाकाहारके चलनकी साक्षी देता है।वर्तमान कालमें अनेक सुप्रसिद्ध अंग्रेज शाकाहारी है।

सम्राज्ञीकी प्रिवी कौंसिलके लॉर्ड हैनन जो सर जेम्स हैननके नामसे ज्यादा प्रसिद्ध है और पिछले पारनैल कमिशनके अध्यक्ष थे, शाकाहारी ही हैं।

बम्बईके श्री गोटलिंग शाकाहारी हैं।

जॉन वेजले शाकाहारी थे। दानवीर हॉवर्ड तथा अन्य कई सुप्रसिद्ध विद्वान भी शाकाहारी ही थे। कवि शैले भी शाकाहारी थे। इस छोटी-सी पुस्तकमें इस विस्तृत विषयके साथ न्याय करने लायक बातें देना सम्भव नहीं है। मुझे तो इतना कहकर ही सन्तोष करना पड़ता है कि जिज्ञासु पाठक स्वयं डॉ० एना किंगफोर्डकी 'परफेक्ट वे इन डायट' पढ़ लें। डा० किंगफोर्ड अपने विषयमें कहती है :

मैंने शाकाहारी भोजन करके अपने तपेदिकका इलाज किया। मुझे एक डाक्टरने बताया कि मैं छः महीनेसे ज्यादा नहीं जी सकती। तो फिर मैं क्या करूँ? बताया गया कि मैं कच्चा माँस खाऊँ और पोर्ट मदिरा पीऊँ। तब मैं देहातमें रहने के लिए चली गई और वहाँ दलिया और फल ही खाया और आज मैं आपके सामने इस मंचपर उपस्थित हूँ।

एक और भी अच्छी पुस्तक है जिसे पढ़नेकी सलाह पाठकको दी जा सकती है। उसका शीर्षक है 'ए प्ली फॉर वेजिटेरियनिज्म' । लेखक है एच० एस० साल्ट ।