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लन्दन-संदर्शिका

शाकाहार मांसाहारसे सस्ता पड़ता है, इस निश्चित तथ्यके विषयमें अब कुछ और कहना बेकार होगा। यदि कोई इसका विरोध करना चाहता है तो वह ९ शिलिंगमें निर्वाह करते हुए मांसाहार करके दिखाये। मैं इतना मानता हूँ कि यदि किसीको आनन्दके लिए नहीं, केवल स्वास्थ्यको दृष्टिसे सप्ताहमें एक-दो बार मांसा-हार करना जरूरी लगता हो तो थोड़ी सावधानी बरत कर इसी रकममें उसकी व्यवस्था की जा सकती है।

एक और तथ्य भी यहाँ बता देने योग्य है। साधारणतया इंग्लैंडके शाकाहारी अपने भोजनमें अंडे रखते हैं; लेकिन भारतीय शाकाहारी उन्हें भोजनमें शामिल नहीं करेगा। दूसरी ओर इंग्लैंडमें ऐसे शाकाहारी है जो दूध या मक्खनका भी सेवन नहीं करते, क्योंकि वे मांस वर्गमें आ जाते हैं।

यह बतानेके पहले कि ९ शिलिंगमें कैसा भोजन प्राप्त किया जा सकता है एक-दो मुद्दे स्पष्ट करने बाकी है।

भोजन खुद बनायें या मकान मालकिनसे बनवायें ? धार्मिक दृष्टिसे देखें तो एक कट्टर हिन्दू होनेके नाते खाना आप खुद बनायेंगे। उस हालतमें आपका खर्च बहुत कम होगा।

यहाँ मैं इतना कह दूं कि इसके विपरीत चाहे जो-कुछ क्यों न कहा जाता हो यदि आपके पास सभी साधन हैं तो कोई भी ऐसी बात नहीं है जो वहाँ आपको पूर्ण रूपसे हिन्दूकी तरह जीवन व्यतीत करने से रोके । यह कहना कि लन्दनमें अलग भोजनकी कोई व्यवस्था नहीं की जा सकती, सरासर झूठ और बहाना ही है। यह कहना ज्यादा सच होगा कि बहुत कम लोग ऐसा करना चाहते हैं। रोज विधिसे पूजा-पाठ करना, नंगे बदन भोजन करना, घंटों नंगे बदन बैठकर चिन्तन करना,यह सब करना तो किसी गरीब व्यक्तिके लिए असम्भव ही होगा, तथापि यदि कोई धनी व्यक्ति मनमाना धन खर्च करनेको तैयार हो, तो इंग्लैंड में ऐसी प्रत्येक धार्मिक क्रिया पूरी की जा सकती है जो भारतमें सम्भव है। यदि वह स्वयं खाना नहीं पकाना चाहता तो वह अपने साथ रसोइया भी ले जा सकता है। परन्तु सामान्य विद्यार्थीके पास ऐसी बातोंके लिए न धन हो सकता है और न समय । मुझे बताइए कि भारतमें ही कितने ऐसे विद्यार्थी मिलेंगे जिन्हें यहाँपर सभी धार्मिक आचार पूरा करनेका समय मिलता है या जो ऐसा करने के इच्छुक ही हैं। यदि यहाँ भी उनका पालन नहीं किया जाता तो धर्मपरायण बड़े-बूढोंको दुख दिये बिना लन्दनमें भी थोड़े-बहुत आचार-धर्मोको छोड़ देना उचित ही होगा। हमारे शास्त्रोंमें भी विद्यार्थियों और यात्रियोंको इस दिशामें विशेष छूट दी गई है। एक सुप्रसिद्ध योगीने मुझे बताया कि यात्रा करते समय वे अधिकांश क्रिया-साधन छोड़ देते हैं।

धार्मिक कर्मकाण्डकी अधिक चिन्ता न करनेवाले और जातिभेद न माननेवाले साधारण भारतीयको मैं यही सलाह दूंगा कि थोड़ा भोजन स्वयं बना लें और कुछ अंश बना-बनाया ले लें।

यदि कोई चाहे तो मकान-मालकिन सारा भोजन तैयार कर देगी। इसके लिए पहलेसे तय कर लेना पड़ता है और किरायेके लिए जो ७ शिलिंगकी रकम दी जाती

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