पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१४

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भ्रमोत्पादक सिद्ध हो सकता है। इससे न उस महापुरुषके प्रति न्याय होगा, न स्वयं पाठकके प्रति। यही मुख्य कारण है कि इतने बड़े पैमानेपर गांधीजीके लेखोंके संग्रहका काम उठाना आवश्यक जान पड़ा। मुझें बताया गया है कि इस ग्रंथमालके पचाससे अधिक खण्ड होंगे। गांधीजीकी यह विशेषता ही इसके प्रकाशनका मूल कारण समझिए।

इस ग्रंथमालाको प्रकाशित करनेका भार उठाकर भारत सरकारके सूचना और प्रसारण मंत्रालयने महात्मा गांधीके — उनकी शिक्षाओं, उनके विश्वासों और उनके जीवन-दर्शनके अध्ययनके लिए वह आधार प्रदान कर दिया है जो नितान्त आवश्यक था। अब जिम्मेदारी विद्यार्थियों और विचारकोंकी होगी कि वे उस कामको पूरा करें, जिसे करनेका महात्मा गांधीने कभी प्रयत्न ही नहीं किया। इस तरह सारी सामग्री उपलब्ध हो जानेसे वे उनके जीवन-दर्शन, उनकी शिक्षाओं, उनके विचारों व कार्यक्रमों और जीवनमें उठनेवाली अगणित समस्याओंपर उनके विचारोंको, तकंसंगत तथा दार्शनिक ढंगसे और विभिन्न शीर्षकों तथा श्रेणियोर्मे विभाजित करके, प्रबंधके रूपमें प्रस्तुत करनेमें समर्थ होंगे। उनकी जीवन-योजनामें छोटी और बड़ी बातों, संसारव्यापी महत्त्वकी और परिमित व्यक्तिगत महत्त्वकी समस्याओं — सबके लिए स्थान था। यद्यपि उन्हें जीवन-भर बड़े-बड़े राजनीतिक प्रश्नोंसे उलझे रहना पड़ा, फिर भी उनके लेखोंका एक बहुत बड़ा भाग सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, आर्थिक और भाषा-सम्बन्धी समस्याओंसे सम्बन्ध रखता है।

वे पत्र-व्यवहारमें बहुत नियमित थे। ऐसा पत्र शायद ही कोई हो, जिसके विचारपूर्ण उत्तरकी आवश्यकता रही हो और उन्होंने खुद ही उत्तर न दिया हो। व्यक्तियोंके नाम ऐसे पत्र, जिनमें उन व्यक्तियोंकी निजी और वैयक्तिक समस्याओंकी चर्चा होती थी, उनके पत्र-व्यवहारका एक बड़ा अंश रहा। उनके जवाब वैसी ही समस्याओंवाले दूसरे व्यक्तियोंके मार्ग-दर्शानके छिए मूल्यवान हैं। अपने जीवनमें दीर्घकालतक उन्होंने शिघ्रलिपिक या मुद्रलेखककी मदद नहीं ली। उन्हें जो-कुछ लिखना होता था, वे अपने हाथसे लिखते थे। इस तरहकी मददके अनिवार्य बन जानेपर भी वे बहुत-सा लेखन अपने हाथसे ही करते रहे। जब उनकी दाहिने हाथकी अंगुलियाँ लिखते-लिखते थक जातीं तब जीवनकी उत्तरावस्थामें उन्होंने बायें हाथसे लिखनेकी कलाका अभ्यास किया। यही उन्होंने कातनेसें भी किया। इस तरह खानगी पत्र-व्यवहार, जो उनके लेखनका अधिकांश है, जनसाधारणके दैनिक जीवनकी समस्याओंपर लागू होनेवाली उनकी शिक्षाओंका एक महत्त्वपूर्ण और सारगर्भित अंग बत गया।

अगर कभी कोई ऐसा पुरुष हुआ जिसने जीवनको सम्पूर्ण रूपमें देखा और जिसने अपने-आपको सम्पूर्ण मानवजातिकी सेवामें निछावर कर दिया, तो वह निश्चय ही गांधीजी थे। उनकी विचारधाराका संबल श्रद्धा और सेवाके उच्च आदर्श थे तथा उनके कार्य और प्रत्यक्ष शिक्षाएँ सदा एकान्त नैतिक और अत्यन्त व्यावहारिक विचारोंसे प्रभावित होती थीं। लोकनेताकी हैसियतसे अपने लगभक साठ वर्षके सारे सेवाकालमें उन्होंने अपने विचारोंकों कभी सामयिक सुविधाओंके अनुसार नहीं बदला।