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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है उसीमें यह काम भी शामिल मान लिया जाता है। लेकिन कुछ लोगोंके लिए यह असुविधाजनक भी हो सकता है। हो सकता है कि मकान-मालकिन शाकाहारी भोजन तैयार करना न जानती हो या वह ईमानदार न हो, या सफाईसे काम न करे। वह मांसके पात्रको साफ किये बिना ही उसमें सब्जी डाल दे। पहली दो कठिनाइयाँ दूर की जा सकती हैं। उसे पाक-पुस्तक दी जा सकती है; वह उस पुस्तककी सहायतासे आवश्यक खाना बना देगी। अत्यन्त सावधान रहनेपर शायद उसे बेईमानी करनेका अवसर भी न मिले। परन्तु यदि वह सफाईसे काम नहीं करती और बेचारे किरायेदारको उसपर निर्भर रहना पड़े तो वह कुछ नहीं कर सकता। इस अन्तिम कठिनाईको दूर किया जा सकता हो तो प्रयत्न करें या फिर उसे अनदेखा कर दें। इसलिए पूरी तरहसे विचार करें तो मकान-मालकिनके सफाईसे काम करने-वाली न होनेपर अपना खाना खुद बना लेना ही अच्छा होगा। जैसा कि कुछ लोगोंको डर होगा, खाना बनाना जरा भी कठिन या कष्टप्रद नहीं है। न धुंआ, न लकड़ियाँ, न उपले और जैसे यहाँ खाना बनाते समय फूंकना पड़ता है या पंखा करना पड़ता है, वहाँ वैसा कुछ भी नहीं है। तेलके सफरी स्टोवसे भारतीय चूल्हेका काम ले सकते है। भारतीय चूल्हेपर ५ या ६ जने लायक जो-कुछ भोजन बनाया जाता है, वह सब स्टोवपर तैयार किया जा सकता है। फिर खाना पकाने में ज्यादा समय भी नहीं लगता । इस कामके लिए बीस मिनिट काफी है। दस मिनिट दूध उबालने में लगते है। जिस समय दूध उबल रहा हो, कुछ लोग अखबार आदि पढ़ लेते हैं। खाना बनाने के लिए एक कलई किया हुआ पात्र, एक दो प्लेटें, दो चम्मचकी जरूरत होगी। इन सबके दाम १०शि० से ज्यादा नहीं हो सकते। खाना बनाने के लिए सफेद मिट्टी-का तेल बहुत अच्छा रहता है। उससे कोई दुर्गन्ध नहीं आती और वह जलता भी अच्छा है। मकान-मालकिन बर्तन भी दे देगी; किन्तु अपने लिए पात्र खरीद लेना ज्यादा अच्छा रहेगा।

कुछ भोजन मकान-मालकिन बना दे सकती है और थोड़ा आप बाहर खा सकते हैं। जैसे सुबहका नाश्ता और रातका भोजन मकान-मालकिन बना सकती है और दोपहरको आप बाहर भोजन कर सकते हैं।

एकाध बारका भोजन आप खुद बना सकते हैं और फिर बाहर खाकर कमी पूरी कर ले सकते हैं। अपने लिए नाश्ता या रातका भोजन तैयार करने में कोई कठिनाई नहीं होती। उनमें तो साधारण चीजें बनानी होती है।

इनमें से कोई-सा प्रबन्ध भी करें, ९ शिलिंगमें निर्वाह किया जा सकता है। मैंने और दूसरे कई लोगोंने भी ये सब प्रयोग करके देखे हैं। सबसे पहला अर्थात् अपना सारा खाना खुद बनाना सबसे सस्ता रहता है। परन्तु उसमें समय ज्यादा लगेगा और पुस्तकालयमें सारा समय बितानेवाले विद्यार्थीको उससे असुविधा हो सकती है।

फिर भी यह देखें कि पहला तरीका अपनानेसे हमें ९ शिलिंगमें पर्याप्त भोजन किस प्रकार मिल सकता है। जैसा कि मैने ऊपर कहा है, जो भोजन हम भारतमें खाते हैं, वहीं इंग्लैंडमें लेना काफी है।