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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जा सकें। यहाँ यह कह दूं कि जिस मौसम में जो फल और सब्जी मिलती हो वही खरीदें, नहीं तो वे बहुत महँगी पड़ती है। फिर उन्हें खरीदना भी ठीक स्थानसे चाहिए। यदि आप रिजेंट स्ट्रीट जाकर मौसमसे पहले अंगूर खरीदना चाहें तो १ पौंडके लिए ३ शिलिंग होगा। इतने महँगे अंगूर तो आप नहीं खरीद सकते । पर मौसम आनेपर मजेसे ४ पेंसमें १ पौंड अंगूर मिल जाते हैं।

कभी-कभी, और मैं तो कहना चाहता हूँ कि अकसर दोपहरका भोजन बाहर ही खा लेना सुविधाजनक रहता है। चाहे आप यात्री हों या विद्यार्थी हों, आप नाश्ता करके जायेंगे और शामको लौटेंगे। ऐसी दशामें भोजनके लिए घर आना पसन्द नहीं करेंगे। ऐसा करने में काफी समय लगता है और काफी परेशानी होती है; आप पुस्तकालयसे भी घर जाना पसन्द नहीं करेंगे। खासकर जब वह घरसे दूरीपर हो। लन्दनके सभी कामकाजवाले इलाकोंमें ऐसे लोगोंके लिए शाकाहारी भोजनालय है। सामान्यतः उनके यहाँ दो विभाग होते हैं। एक विभागमें ६ पेंसमें भोजनकी तीन चीजें मिलती है। आप जब टिकट खरीद कर भोजनके लिए देते हैं तो आप बीस चीजोंमें से कोई-सी तीन ले सकते हैं। यह भोजन अत्यन्त लोकप्रिय है। अकसर दोपहर १ से लेकर २ बजेतक ग्राहकोंकी अत्यधिक संख्याके कारण स्थान पाना कठिन हो जाता है।

दूसरे विभागमें आप जो चाहे खा सकते है और जो-कुछ खायेंगे, उसके दाम देने पड़ेंगे। खाद्य पदार्थोकी सूची जिसे 'मेनु' कहते हैं आपको दे दी जाती है। उसमें प्रत्येक वस्तुके दाम साथ लिखे रहते हैं। आप अपनी भूख और जेबके अनुसार भोजन चुन सकते हैं। ९ शिलिंगवाला व्यक्ति तो किसी भी विभागमें खा सकता है। आप पायेंगे कि प्रथम विभागमें दो तरहकी चीजें ही खानेके लिए काफी है और प्रथम विभागको तीन चीजें तो किसी पेटूके लिए भी काफी होंगी। यह भी कह दें कि दोनों विभागोंके भोजनमें कोई अन्तर नहीं होता। वास्तवमें खानेकी चीजें दोनों-में एक-सी होती है। प्रथम विभागमें मनको यह सन्तोष रहता है कि आप ज्यादा दाम दे रहे हैं; या यदि आप किसी मजदूरके साथ बैठकर भोजन करने में लज्जाका अनुभव करते है तो यह भी सन्तोष रहता है कि प्रथम विभागमें आपको ऐसी स्थितिमें डालनेवाला कोई व्यक्ति नहीं है। फिर प्रथम विभागमें, जिसे खानेका कमरा कहा जाता है, स्थान भी ज्यादा रहता है और उसकी सजावट भी ज्यादा अच्छी होती है। शाकाहारी भोजनालयोंमें सामान्यत: जो भोजन दिया जाता है, मैं यहाँ उसका एक नमूना दे रहा हूँ। इसके बारेमें डा० रिचर्डसन कहते हैं :

मैं तो साफ-साफ यह स्वीकार करता हूँ कि यदि मुझे हर समय वैसा हो भोजन मिल सके जैसा कि सर्वोत्तम शाकाहारी भोजनगृहोंमें मिलता है तो मैं खुशोसे किसी भी दूसरे ढंगका भोजन पसन्द नहीं करूंगा। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि धीरे-धीरे वर्तमान उत्तम शाकाहारी भोजन केन्द्र राष्ट्र के विद्यालय बन जायेंगे और राष्ट्रके हर होटल में रसोइये और घरों में गृहणियाँ यह कार्य करने लगेंगी।