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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


द्राक्ष चेद्यर पनीर
आलूचे गोर्गोजोला पनीर
आड़ सलाद पत्ता

चुनने के लिए इससे ज्यादा खाद्य पदार्थ जरूरी नहीं हो सकते।

शाकाहारी भोजन-गृह रविवारको और बैंककी छुट्टी के दिन बन्द रहते हैं। तब दोपहर का भोजन घरपर लेना चाहिए।

मैंने भोजन सम्बन्धी इस विषयपर लिखते समय सिर्फ अपने और दूसरोंके अनुभव के परिणाम लिखे हैं। इस बातमें शायद पाठकको दिलचस्पी हो सकती है कि ऊपर वर्णित इन खाद्य पदार्थोंको लेनेसे देहको शक्ति देने लायक सभी तत्त्व मिल जाते हैं। ये तत्त्व कौन-से हैं और कितनी मात्रामें लेने चाहिए, इसका वर्णन इस पुस्तकके क्षेत्र से बाहर है। वह एक दूसरा विषय है। जिज्ञासु पाठक 'परफेक्ट वे इन डायट', 'फ्रूट्स ऐंड फेरिनेशिया' आदि दूसरी पुस्तकें पढ़कर मेरे कथन की सचाई परख सकते हैं।

इसके साथ एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयकी चर्चा समाप्त होती है। उपर्युक्त योजनाको कार्यान्वित करनेमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए और एक बार उसे कार्यान्वित करनेपर आप पायेंगे कि स्वास्थ्यकी दृष्टिसे तो वह और भी अच्छी है। क्योंकि विषयभोग और पेटूपन स्वास्थ्य बनाये रखने में सहायक नहीं होते। भोजन-पर बुद्धिमत्तापूर्ण संयम रखना स्वास्थ्य-रक्षा या उसे सुधारनेका अचूक तरीका है। डा° ए° वॉन डुरिंग कहते हैं : "जीवनका आनन्द लेना हो तो भोग-विलास त्याग दो।" इटलीकी कहावत है, "जो ज्यादा खाता है वह कम खायेगा" (क्योंकि पेटू ज्यादा खाकर अपनी जीवन अवधि कम कर लेता है)। फिर सिनेकाका कथन है "मुल्टास मॉरबोस मुल्टा फरकुला फ्यूरेन्ट" — "विविध भोजन विविध रोग।"

उपर्युक्त उद्धरण लेटिनके प्रमुख प्रोफेसर मेयरकी पुस्तक 'व्हाई आई एम ए वेजिटेरियन' से लिये गये हैं । वे विद्यार्थियोंकी फिजूलखर्चीके विषयमें कहते हैं :

हम ऐसे कई लोगों को जानते हैं जो स्वयं सीधे-सादे भोजनसे निर्वाह करते हैं लेकिन अतिथियोंको ऐसा भोजन खिलाने में संकोच करते हैं जिसमें कम पैसे खर्च होते हों। उन्हें ऐसा करना कृपणता, ओछापन और अशिष्टता लगता है। इस मिथ्या धारणाका विद्यार्थियोंपर कुछ कम असर नहीं होता, खासकर इंग्लैंड में। मितव्ययी व्यक्ति भी सरल आत्मसंयमके द्वारा दिनमें तीन शिलिंग अर्थात् सप्ताहमें एक गिन्नी बचा सकते हैं। दूसरे शब्दों में वे किसी प्रतियोगिता में बैठे बिना ५० पौंड प्रतिवर्षकी छात्रवृत्ति जीवन-भर के लिए पा सकते हैं। इसके साथ चरित्र और स्वास्थ्यकी जो स्वतन्त्रता मिलेगी सो अलग।

सर हेनरी टॉमसनने तो यहाँतक कह दिया है कि "हमारा भोजन मद्यपान से भी ज्यादा हानिकर है।" और हममें कमके बजाय ज्यादा भोजन करनेकी वृत्ति होती है, इसे कौन नहीं जानता?