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लन्दन-संदर्शिका

अभी वह समय बहुत दूर है। इस बीच हम सावधान रहें ताकि उस भविष्यकी अवधि और न बढ़ जाये।

जल्दबाजीमें हम मामला बिगाड़ सकते है और फिर यदि हम काम भी वैसा न करें जैसा करना चाहिए तो उसका भी यही परिणाम होगा। इसलिए हमें इन दोनोंके विषयमें सावधान रहना है।

इन दिनों कामको कुछ आरामसे करनेकी वृत्ति बन गई है अर्थात् कम काम करके ज्यादाकी आशाकी जाती है। यदि हमें अपनेको और भी नीचा नहीं बना लेना है तो इससे बचना चाहिए। यदि माता-पिता हमें इंग्लैंड भेजते हैं या हमें वहाँ जानेके लिए छात्रवृत्ति मिली है तो अपने कर्त्तव्यका पालन करना हमारा परम धर्म है। हम जो-कुछ काम करते हैं, जो-कुछ खर्च करते हैं उसका हिसाब हमें अपने माता-पिता या संरक्षकको देना है। हम जैसी आशा उनसे करते हैं वैसा ही व्यवहार हमें भी करना चाहिए। यदि हम अपने खर्चसे किसीको बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड भेजें तो मुझे लगता है कि हम यही आशा करेंगे कि वह वहाँ अपने हर क्षणका सदुपयोग करे और हम यह भी आशा करेंगे कि वह वहाँ बिताये हुए समयका हमें हिसाब दें। हमसे भी ठीक इसी बातकी आशा की जायेगी। हमसे सिर्फ यही आशा की जाती है कि हमें इस बातका ध्यान रहे और उसीके अनुसार हम काम भी करें। इतना करें, तो हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है और ऐसा अवसर कभी नहीं आयेगा कि इंग्लैंड जानेका अफसोस हो। यदि हम वहाँ बैरिस्टर बननेके लिए जाते हैं तो अच्छा बैरिस्टर बननेके लिए हमें पूरा प्रयत्न करना चाहिए और भोगविलास और आनन्द लूटनेके चक्करमें नहीं पड़ना चाहिए।

जो लोग अपने बालकोंको इंग्लैंड भेजना चाहते हैं वे पहले अच्छी तरह यह विश्वास कर लें कि वे बालक अपने कर्तव्यका पालन पूरी तरह करेंगे या नहीं, ताकि बादमें उन्हें भेजनेके लिए कभी दुख करनेका अवसर न आये। इसका सबसे अच्छा तरीका यही है कि लड़केको उतना ही धन दे दिया जाये कि वह बैरिस्टरी-की शिक्षा पूरी कर ले और फिर उसे साफ-साफ कह दिया जाये कि वह और आर्थिक सहायता की आशा न करे। इंग्लैंडसे उसके लौट आनेके बाद एक-दो सालतक उसके लिए कुछ व्यवस्था कर दें फिर उसे स्पष्ट समझा दें कि उसे अपनी आजी-विकाका खुद ही प्रबन्ध करना होगा। ऐसा व्यवहार कुछ कठोर लग सकता है, पर वह सर्वोत्तम कल्याणका साधन होगा; अन्यथा माँ-बाप और बालक दोनोंका जीवन क्लेशमय और कष्टपूर्ण ही होगा।

क्या इस समय जरूरतसे ज्यादा बैरिस्टर हैं ? दोनों ही बातें ठीक कही जा सकती हैं। अगर हम किसी एक प्रान्तको ही लें, तो ज्यादा, पर पूरे भारतको लें तो बहुत कम है। बैरिस्टर सम्राज्ञीके राज्यके किसी भी प्रान्तमें काम कर सकते है,इस बातको या तो भुला दिया गया है या इसकी कोई परवाह नहीं करता। क्योंकि हर बैरिस्टर अपने ही प्रदेशमें वकालत शुरू करता है। अपने प्रदेशमें मित्रों या देशके ज्ञानके कारण सफलतापूर्वक काम चला पानेकी कुछ सम्भावना तो रहती है,