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लन्दन-संदर्शिका

मिलता है। इसलिए चिन्ता और कठोर परिश्रम किये बिना मजेसे तैयारी की जा सकती है। तैयारीके लिए आवश्यकतासे अधिक समय देना ठीक है या नहीं, यह एक अलग सवाल है। परन्तु परीक्षाकी तैयारीके लिए सिर्फ तीन महीने ही दिये जायें तो बहुत ही कड़वा और विभिन्न परिणाम होगा।

तीसरा कारण है कि अध्ययनके लिए कई सुविधाएँ है जैसे सहायताके लिए निजी शिक्षक, आदि। परन्तु प्रयत्न यही करना चाहिए कि निजी शिक्षकसे सहायता न लेनी पड़े। यह धनका अपव्यय ही है। शिक्षकसे पढ़नेवाला विद्यार्थी कभी आवश्य-कतासे अधिक नहीं पढ़ता और जो-कुछ पढ़ता है, उसे परीक्षाके तुरन्त बाद भूल जाता है। ऐसा अनुभव कई लोगोंको हुआ है। स्वयं तैयारी करना ही सबसे बढ़िया रहता है।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि आजकल परीक्षाका स्तर ऊँचा करनेकी अच्छी वृत्ति है। आजकल अधिक उपयोगी पाठ्यक्रम निर्धारित करना शुरू कर दिया गया है। ताजी नियमावलीमें दो वर्ष पुरानी नियमावलीसे काफी ज्यादा चीजें दी गई है। क्योंकि [ उसमें ] साक्ष्यका ज्ञानमात्र भी आवश्यक नहीं था। अब उसका होना जरूरी है।

चारों संस्थाओंकी सामान्य कक्षाओंमें उपस्थित रहकर विद्यार्थी स्वयं पढ़ते हैं। प्रत्येक संस्था कुछ विशेष व्याख्यानोंका आयोजन भी करती है। साधारणत: इन व्याख्यानोंमें वही विद्यार्थी भाग लेते हैं जो छात्रवृत्तिकी परीक्षामें बैठना चाहते हैं। ये परीक्षाएँ सामान्य परीक्षाओंसे विभिन्न होती है। पर इन व्याख्यानोंमें उपस्थित रहना परोक्ष रूपसे अनिवार्य बना दिया गया है, क्योंकि जिन विषयोंपर व्याख्यान दिये जाते हैं, उनकी भी परीक्षा होती है।

दीक्षा-समारोह तो मात्र औपचारिक विधि ही है।

दीक्षा-समारोहमें बुलाये जानेके बाद आपको एक प्रमाणपत्र दे दिया जाता है और यदि आप भारत या उपनिवेशोंमें वकालत करना चाहते हैं तो आपको विशेष प्रमाणपत्रके लिए निवेदनपत्र देना पड़ता है।

इंग्लैंडसे रवाना होने से पूर्व बैरिस्टर बन चुके विद्यार्थी साधारणतः पाँच शिलिंग-की फीस देकर सम्राज्ञीके उच्च न्यायालयमें अपना नाम दर्ज करा लेते हैं।

यहाँ इस बातपर विचार करना महत्त्वपूर्ण हो सकता है कि विद्यार्थीका छात्र-वृत्तिकी परीक्षामें बैठना वांछनीय है या नहीं। ऊपर यह बताया जा चुका है कि परीक्षामें उत्तीर्ण होनेके लिए विद्यार्थीके पास आवश्यकतासे अधिक समय है। तब प्रश्न यह है कि वह बाकी समय क्या करे? कोई कह सकता है कि वह उसे निजी अध्ययनमें लगायेगा। यह कह देना आसान अवश्य है। ऐसे लोग हैं जो परीक्षा और अध्ययन दोनोंके लिए अध्ययन करते है, किन्तु यह अपवाद सिर्फ इस नियमको सिद्ध करता है कि सामान्यत: व्यक्ति कोई काम तभी करता है जब वह उसे सौंप दिया जाता है। इसलिए नहीं कि वह काम अच्छा है। बहुधा दूसरे काम निजी अध्ययनका स्थान ले लेते हैं, परन्तु परीक्षाके लिए की जानेवाली पढ़ाईको कोई नहीं