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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अब इस विषयान्तरणको छोड़कर अपनी बातपर लौटें। यदि आपके पास १०,००० रुपये हों तो उन्हें पास रखें। खर्च सिर्फ ६,००० या जितने ४२० पौंडके बराबर बैठे उतने ही करें। बाकी भारत लौटने पर आपके काम आयेंगे। इस विचारमें कितना आश्वासन है ! किसी नये बैरिस्टरसे पूछे कि यदि उसे भारतमें काम शुरू करनेके लिए २,००० रुपये मिलें तो उसे कैसा लगेगा। इस विचारसे उसे कितना आश्वासन मिलता है, यह बात आप तब समझ सकेंगे; किन्तु यदि आप दसके-दस हजार विलायतमें खर्च कर डालें और भारत लौटनेपर गाँठमें एक भी पैसा न हो तो उससे आपको जितना कष्ट होगा, शायद उसकी पूर्ति करनेवाला आनन्द ४२० पौंडसे ज्यादा खर्च करके नहीं मिलेगा। इसके सिवा अतिरिक्त धन खर्च करके आप ज्यादा सुखसे रहनेकी आशा करते जरूर है, पर उससे आप सुखी होंगे ही इसका कुछ भरोसा तो नहीं है। आपके पास १०००, २००० या जितने बच सकें, उतने रुपये रहना अत्याव-श्यक है। फिर आपको इंग्लैंड जानेका दुख नहीं होगा। उनके सहारे आप अपने लिए स्थान बना सकेंगे। पर यदि सहारेके लिए धन नहीं होगा तो आप जो महल खड़ा करनेकी आशा करते हैं, वह महल नींव न होनेके कारण ढह जायेगा और आप अपने आपको निराश्रित पायेंगे। क्योंकि लौट आनेपर आपको फौरन' काम मिलनेवाला नहीं है। शायद मनको खटकनेवाला कोरा आदर-सत्कार और बधाइयाँ ही मिलेगी। और अगर काम हो भी, तो वकालतका अनुभव न होने के कारण आप कदाचित् उसे स्वीकार नहीं कर पायेंगे। इसलिए यदि आप एक ऐसे व्यक्तिकी सलाह मानें, जिसे इसका कटु अनुभव हो चुका है और उसका आप लाभ उठाना चाहें तो १०,००० रुपये होनेपर भी आप सिर्फ ४२० पौंडके बराबर राशि खर्च करें और बाकी भारतमें खर्च करनेकी दृष्टिसे बचा लें। इससे आप सुखी और सन्तुष्ट रहेंगे। कोई भी आपपर उँगली नहीं उठायेगा। आपको अपनी स्थिति कमजोर नहीं लगेगी और दो-एक सालमें अपनी योग्यता और अवसरोंके अनुसार आप एक माने हुए बैरिस्टरके रूपमें जम पायेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि इंग्लैंडमें निर्मित अपने मितव्ययी स्वभावसे आपको भारतमें भी लाभ होगा। तब आप ज्यादा अच्छी तरह निर्वाह कर पायेंगे और आपको ऐश-आरामसे रह सकनेकी बात अखरेगी नहीं।

सच तो यह है कि इंग्लैंडसे लौटने पर आपको लगभग २,००० रुपये पानेकी आशा न हो, तो मैं बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड जानेकी सलाह ही नहीं दूंगा। हाँ, यदि आपको लौटनेके बाद कोई अच्छी नौकरी मिलनेकी आशा हो, तो बात दूसरी है। क्योंकि २,००० रुपये या इतनी राशिके बराबर ही धनकी भारत में आपको उतनी ही आवश्यकता होगी, जितनी इंग्लैंडके लिए ४२० पौंडकी थी।

यदि आप भारत लौटकर वकालत करना चाहते हों तो इंग्लैंड में भारतीय कानूनोंका अध्ययन कितना महत्त्वपूर्ण है, यह बताया ही नहीं जा सकता। ये पुस्तकें आपको पुस्तकालयमें मिलेंगी। हिटली स्टोक्स लिखित 'एंग्लो इंडियन कोडज' इंग्लैडके भारतीय विद्यार्थियोंमें बहुत लोकप्रिय हैं।

जो व्यक्ति अध्ययनके लिए इंग्लैंड जानेके इच्छुक है उनके सूचनार्थ और मार्ग-दर्शनके लिए कई पुस्तकें छापी गई हैं। इनमें सदा यहाँ दिये गये अनुमानोंसे ज्यादा