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लन्दन-संदर्शिका

और दूसरी चीजें मुफ्त दे दीं। सो हम इस भारतीय भोजनसे काम चलाने लगे। ये नाविक बहुत गन्दे थे और साधारणत: मैं रोटीके बदले डबलरोटी लेना पसन्द करता था। दूसरे सहयात्रियोंके अनुरोध करनेपर भी मैं कभी उनके साथ मेजपर बैठकर खाना खानेके लिए अपने मनको नहीं मना पाया। स्वभावत: वापसी यात्रामें मै ज्यादा अच्छी तरह अपना काम चला सका। मुझे दूसरे यात्रियोंके साथ एक ही मेजपर बैठते संकोच नहीं होता था। और यदि किसीको कोई धार्मिक आपत्ति न हो तो अच्छा यही होगा कि वह इंग्लैंड जाते समय भी ऐसा ही करे। जहाज-पर पर्याप्त शाकाहारी भोजन मिल जाता है, फिर भी मैंने मुख्य परिचारकसे कुछ शाक आदि देनेका भी अनुरोध किया। आम तौरपर मैं नाश्तेमें जईका दलिया, दूध, पके हुए फल, डबलरोटी, मक्खन, मुरब्बा और मामलेड और कोको लेता था। दोपहरके भोजनके लिए चावल, सब्जीका शोरबा, दूध और मुरब्बेवाली पेस्ट्री, पकाये हुए फल, मक्खन और डबलरोटी। रातके भोजनके लिए डबलरोटी, मक्खन, मुरब्बा, कोको, नमक, काली मिर्च और पनीरके साथ सलाद पत्ती। मैं दिनमें सिर्फ तीन बार भोजन करता था। जहाजपर सप्ताहमें दो बार ताजा फल और मेवा दिया जाता है।

मैंने १२ पौंड प्रतिमास खर्च करते हुए कैसे रहना शुरू किया:

एक महीना तो मैं अपने एक मित्रके यहाँ रहा। उन्होंने मुझे बहुत स्नेहसे रखा और मुझे बताया कि समाजमें कैसे क्या व्यवहार करना चाहिए, कैसे काँटा,चम्मचसे खाना चाहिए। उसके बाद मैं एक ऐसे परिवारके पास रहने गया, जहाँ मुझे सप्ताहके भोजन और कमरेके लिए ३० शिलिंग देने पड़ते थे। इस तरह सिर्फ रहने और भोजनका खर्च ही ६ पौंड पड़ता था। फिर भी मुझे बताया गया कि अगर मैं महीने में १२ पौंडपर निर्वाह करता हूँ, तो यह बहुत मितव्ययितासे रहना माना जायेगा। इस तरह किसी न किसी प्रकार महीने में १२ पौंड खर्च हो ही जाते थे। मैंने आरम्भमें ही चाय पीना नहीं छोड़ दिया था। और न ही मैं शुरूमें तीन बार भोजन करना ठीक मानता था। किसीने सुझाव दिया कि यदि मैं सदा परिवारके साथ ही भोजन करूँ और चाहे जब चाय वहीं पोऊँ, तो मुझे कंजूस माना जायेगा। इस सुझावको मानते हुए मैं सप्ताहमें कमसे-कम एक बार दोपहरका भोजन बाहर खाता था और चाय सिर्फ तीन बार पीता था। इस तरह पूरे पैसे उस परिवारको देते हुए भी मैं बाहर भोजन' और चायपर लगभग १० शिलिंग खर्च करता था। मैं बेकार ही बहुतसे पैसे यात्रामें भी खर्च कर दिया करता था। यहाँ यह बतानेकी कोई जरूरत नहीं है कि सिर्फ यह दिखानेके लिए कि आप कंजूस नहीं है या आप बहुत धनी है, आप जानबूझकर बाहर भोजन करें या चाय पियें तो उसमें न तो शिष्टता है और न ऐसा करनेकी कोई आवश्यकता है। हाँ, यदि आप कामसे बहुत दूर गये है और चायके लिए वापस आनेसे समय खराब होगा, इसलिए आप बाहर भोजन कर लें या चाय पी लें तो यह दूसरी बात है। फिर परिवारके

१. देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय १४ ।