पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हाथ रहते हुए आपसे ठीक समयपर आनेकी आशा की जाती है। उनके यहाँ खानेका समय तय रहता है। वे आपकी प्रतीक्षा नहीं करेंगे और उनसे ऐसी आशा भी नहीं की जाती। सो यदि आप घरसे बाहर गये हों और आपको लगे कि आप ठीक समयपर भोजनके लिए नहीं पहुँच सकेंगे, उस दशामें आपको खाना बाहर खाना चाहिए। ऐसा कभी-कभी ही होता है और उसमें ज्यादा पैसे खर्च नहीं होते। लेकिन जो महीने में ४ पौंडमें काम चलाना चाहता है, वह ऐसा नहीं कर सकता। वह तो किसी अच्छे परिवारके साथ १ पौंड देकर रह भी नहीं सकता।

वे लोग जो खाना देते थे, वह बहुत ही घटिया दर्जेका रहता था। (इसमें उनका दोष नहीं है। उनके यहाँ में पहला शाकाहारी किरायेदार था।) भोजनमें शाकाहारी सूप, एक सब्जी, बहुधा आलू और कुछ ताजे फल मिलते थे। नाश्तेके लिए वे डबलरोटी, मक्खन और मुरब्बा और चाय दिया करते थे; और मैं कभी-कभी दलिया ले लेता था। दोपहरके भोजनके लिए अकसर डबलरोटी, मक्खन और पनीर तथा चायके समय डबलरोटी, मक्खन, चाय और कभी-कभी केक दिया करते थे। इस सबमें उनका खर्च प्रति सप्ताह ७ शिलिंगसे ज्यादा नहीं होता था। इस तरह आप देखेंगे कि मैं उन्हें ३० शिलिंग देता था सो इसलिए नहीं कि मेरे रहने-खानेका उन्हें इतना खर्च पड़ता था या कि इससे भी आधा खर्च पड़ता था, पर इसलिए कि मुझे उनके सहवासका आनन्द लेनेका अवसर दिया गया था।

सामान्यतः यह माना जाता है कि अंग्रेजोंके तौर-तरीके सीखने के लिए किसी परिवारके साथ रहना वांछनीय है। ऐसा प्रबन्ध कुछ महीनोंके लिए ठीक हो सकता है, परन्तु तीन साल किसी परिवारके साथ बिताना अनावश्यक ही नहीं, वरन् अकसर ऊबा भी देता है। परिवारमें रहते हुए विद्यार्थीका नियमित जीवन व्यतीत करना असम्भव होगा। कई भारतीयोंका यही अनुभव है। यदि आप किसी परिवारके साथ रहते हैं तो आपको उनकी खातिर समयका थोड़ा-बहुत त्याग तो करना ही पड़ेगा, चाहे सिर्फ...

...सुबह और शामका भोजन बनाना और दोपहरका भोजन बाहर खा लेना । मुझे प्रति सप्ताह कमरेके लिए ज्यादासे-ज्यादा ८ शिलिंग, नाश्ते और शामके भोजनके लिए ६ पेंस और दोपहरके भोजनके लिए ज्यादासे-ज्यादा १ शिलिंग खर्च करना था। मुझे बताया गया कि ब्राइटनमें एक शाकाहारी भोजनालय भी है।

ब्राइटन पहुँचने पर मुझे एक अच्छा कमरा खोजने में काफी कठिनाई हुई। मकान-मालकिनें इस बातका विश्वास नहीं कर पाती थीं कि कमरे में भोजन बनाने से कमरा गन्दा नहीं होगा। एकने कहा, "ना, मैं तो २० शिलिंगपर भी कमरा नहीं दे सकती। चिकनाईके दागोंसे सारा कालीन गन्दा हो जायेगा और तुम्हारे जानेके बाद कोई इस कमरेको लेनेके लिए तैयार नहीं होगा।" मैंने उसे यकीन दिलाया कि आप

१. मूल लेखके पृष्ठ, ५, ६, ७, ८ उपलब्ध नहीं हैं।

२.देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याप १९ ।