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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहना सम्भव है। यह निवासगृह प्रेस्टन पार्कके पास है। साप्ताहिक किराया था ५ शिलिंग, नाश्तेके ४ पेंस, दोपहरके भोजनके ९ पेंस और रातके भोजनके ४ पेंस। यदि मुझे इस घरका पहले पता चला होता तो और भी कम खर्च में ज्यादा आरामसे रह पाया होता। किन्तु तब मुझे इतनी अच्छी तरह खाना बनाना न आ पाता। ब्राइटनमें एक और शाकाहारी निवासगृह भी है, जहाँ निवास और भोजनके लिए प्रति सप्ताह १८ शिलिंग लिये जाते हैं।

कह सकते हैं कि भोजन बनाने में समय ज्यादा नहीं लगता था। नाश्ता तैयार करने में सिर्फ दस मिनट लगते थे। क्योंकि सिर्फ दूध ही गर्म करना पड़ता था। शामके भोजनमें लगभग २० मिनट और दोपहरके भोजनमें १ घंटा लग जाता था। इस सफलतासे उत्साहित होकर लन्दन पहुँच कर मेरा पहला काम यही था--किसी योग्य कमरेकी तलाश करना। मैंने टेविस्टॉक स्ट्रीटमें ८ शिलिंगके किरायेपर एक कमरा पसन्द किया। मैं अपना नाश्ता और शामका भोजन कमरे में बना लिया करता था और दोपहरका भोजन बाहर लेता था। मकान-मालकिनने मुझे प्लेटें, चम्मच, चाकू आदि चीजें दे दी। सुबहके नाश्ते में हमेशा दलिया, पकाये हुए फल और डबल-रोटी तथा मक्खन लेता था (३ पेंस)। मैं ६ पेंसमें किसी एक शाकाहारी भोजना-लयमें दोपहरका भोजन ले लिया करता था और रातके भोजनके लिए मैं डबलरोटी और दूध और पकाये हुए फल या मूली या ताजा फल ले लेता था (३ पेंस)। इस तरह इंग्लैंडमें अपने वासके अन्तिम नौ महीनोंमें मेरा रहने-खानेका खर्च सिर्फ १५ शिलिंग था। बादमें जब मैंने उसी घरमें ७ शिलिंग किरायेवाला कमरा ले लिया तो यह खर्च १४ शिलिंगतक होने लगा। इस समय मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहा और मुझे बहुत कड़ा परिश्रम, शायद सबसे ज्यादा कड़ा परिश्रम करना पड़ा, क्योंकि इस समय अन्तिम परीक्षाके लिए सिर्फ पाँच महीने रह गये थे।

मैं प्रतिदिन लगभग ८ मील चलता था। और दिनमें कुल मिलाकर तीन बार चला करता था। एक बार शामके ५-३० बजे एक घंटा,दूसरी बार हमेशा रातको सोनेसे पहले ३०-४५ मिनट । मेरा स्वास्थ्य इस अवधिमें एक बार भी नहीं बिगड़ा, सिर्फ एक बार मुझे ज्यादा काम और ठीक कसरत न करनेसे ... की शिकायत हुई। मैंने कोई दवा लिये बिना उससे छुटकारा पा लिया। शाकाहारी भोजनका सेवन और खुली हवामें कसरत ही सिर्फ मेरा स्वास्थ्य अच्छा रहने के कारण माने जा सकते है। कितनी ही ठंडक क्यों न हो या गहरा कोहरा छाया हो, मैने घूमने जाना नहीं छोड़ा। और खुली हवाके समर्थक डा० एलिन्सनकी सलाह मानते हुए मैं हर तरहके मौसममें अपने सोनेके कमरेकी खिड़कियाँ ४ इंच खुली रखता था। सामान्यत: शीतकालमें लोग ऐसा नहीं करते, परन्तु ऐसा करना बहुत ठीक लगता है। किसी भी हालतमें मुझे तो उससे किसी तरहका कष्ट नहीं हुआ।

अंग्रेजी प्रतिसे।

सौजन्य : प्यारेलाल नैयर