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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, आप मानेंगे, भारतको लाभ पहुँचे बिना नहीं रह सकता।

और भी अनेक कारण बताये जा सकते है कि क्यों आपको मंडलके सदस्य और 'वेजिटेरियन'के ग्राहक बनना चाहिए। परन्तु मेरा खयाल है कि मेरे प्रस्ताव पर आप अनुकूल विचार करें, इसके लिए इतने ही कारण काफी होंगे।

अगर आप अन्नाहारी न हों तो भी देखेंगे कि उपर्युक्त कारणोंमें से अनेक आप पर भी लागू होते हैं, और आप 'वेजिटेरियन' के ग्राहक बन सकते हैं। और कौन जानता है कि आगे चलकर आप उन लोगोंकी कतारमें शामिल होनेको एक विशेषाधिकार न समझने लगेंगे, जो अपने अस्तित्वके लिए सहजीवी पशुओंके रक्तपर कभी अवलम्बित नहीं रहते ?

हाँ, आप मैचेस्टर वेजिटेरियन सोसाइटी और उसका मुखपत्र 'वेजिटेरियन मेसेंजर' भी पसन्द कर सकते हैं। मैंने लंदन वेजिटेरियन सोसाइटी और उसके मुख-पत्रको हिमायत तो सिर्फ इसलिए की है कि वह लंदनमें होनेके कारण बहुत नजदीक पड़ता है। और इसलिए भी कि उसका पत्र साप्ताहिक है।

मुझे भरोसा है कि कमखर्चीके खयालको आप सोसाइटीके सदस्य होने और पत्रके ग्राहक बननेके आड़े नहीं आने देंगे; क्योंकि ग्राहक-चन्दा बहुत कम है, और वह निश्चय ही आपको अपने खर्चसे ज्यादाका लाभ पहुँचा देगा।

आशा है कि आप इसे मेरी धृष्टता नहीं समझेंगे।

आपका स्नेही भाई,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे]

वेजिटेरियन, २८-४-१८९४

३४. अन्नाहार और बच्चे

श्री मो० क० गांधी एक खानगी पत्रमें लिखते हैं :

हालमें ही वेलिंगटनमें पादरी एंड्रयू मरेकी अध्यक्षतामें केसविक ईसाइयोंका एक विराट् सम्मेलन हुआ था। मैं कुछ प्यारे ईसाइयोंके साथ उसमें गया था। उनका ६-७ वर्षका एक लड़का है। उस दौरानमें एक दिन वह मेरे साथ घूमने के लिए गया। मैं उससे सिर्फ प्राणियोंके प्रति दयाभावकी बात कर रहा था। बातचीतमें अन्नाहारकी भी चर्चा चली थी। मुझे मालूम हुआ कि तबसे उस लड़केने मांस नहीं खाया। यह बातचीत होनेके पहले उसने मुझे भोजनकी मेजपर केवल शाकाहार करते जरूर देखा था और मुझसे पूछा था कि आप मांस क्यों नहीं खाते। उसके माता-पिता स्वयं तो अन्नाहारी नहीं है, परन्तु अन्नाहारके गुणोंको माननेवाले हैं। उन्हें इस सम्बन्धमें अपने लड़के से मेरे बातचीत करनेपर कोई आपत्ति नहीं थी।