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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। उसमें अत्यन्त स्पष्टताके साथ बताया गया है कि भारतीय जातियाँ लगभग स्मरणातीत कालसे प्रातिनिधिक संस्थाओंके सिद्धान्तोंसे परिचित रही हैं। उस महान कानूनविशारद और लेखकने बताया है कि "ट्यूटानिक मार्क"पर जबतक शुद्ध शास्त्रीय रोमन स्वरूपकी कलम नहीं लगा दी गई, तबतक वह उतना सुसंगठित या तात्त्विक रूपमें उतना प्रातिनिधिक नहीं था, जितनी कि भारतीय ग्राम-पंचायतें थीं।

(९) श्री चिजोम ऐन्स्टीने लंदन में ईस्ट इंडियन एसोसिएशनके सामने भाषण करते हुए कहा था:

जब हम पूर्वके लोगोंको शिक्षा और इसी तरहको तमाम चीजोंसे नगरपालिकाके शासन और संसदीय शासनके लिए तैयार करनेकी बातें करते हैं, तब कहीं हम भूल न जाये कि पूर्व ही नगरपालिका--प्रणालीका जनक है। स्थानिक स्वराज्य शब्दके व्यापकतम अर्थ में--उतना ही पुराना है, जितना कि स्वयं पूर्व । जिसे हम पूर्व कहते हैं उसमें रहनेवाले लोगोंका धर्म कोई भी हो, उस देशमें उत्तरसे दक्षिणतक और पूर्व से पश्चिमतक एक हिस्सा भी ऐसा नहीं है, जो नगरपालिकाओंसे छाया न हो। इतना ही नहीं, हमारी प्राचीन कालको नगरपालिकाओं के समान, वे सब आपसमें ऐसी आबद्ध हैं, मानो किसी जालमें गुंथी हुई हों। इस तरह, प्रतिनिधित्वकी उस महान प्रणालीका ढाँचा आपको तैयार मिला है।

प्रत्येक गाँव या कस्बेमें हर जातिके अपने नियम और व्यवस्थाएँ हैं। वे अपने-अपने प्रतिनिधियोंका चुनाव करती हैं। और वे ऐंग्लो-सैक्सनोंके "वाइटन" का', जिनसे वर्तमान संसदीय संस्थाओंका विकास हुआ है, हू-ब-हू नमूना हैं।

(१०) "पंचायत" शब्द भारतके कोने-कोने में प्रचलित सामान्य शब्द है। और,जैसा कि माननीय सदस्यगण जानते होंगे, उसका अर्थ है पांच लोगोंकी सभा, जिसका चुनाव इन पाँच व्यक्तियोंकी जाति ही अपने सामाजिक कामकी व्यवस्था और नियंत्रणके लिए करती है।

(११) मैसूर राज्यमें इस समय एक प्रातिनिधिक संसद मौजूद है। वह ठीक ब्रिटिश संसदके नमूनेकी है और उसे मैसूर विधानसभा कहा जाता है।

(१२) डर्बनमें इस समय जो व्यापार करनेवाले भारतीय हैं उनकी भी अपनी चायत या पाँच लोगोंकी सभा मौजूद है। बहुत बड़े महत्त्वकी बातोंमें सारा समाज उनके विचार-विमर्शका नियंत्रण करता है। सभाके संविधानके अनुसार, सारा समाज

१. बहुत प्राचीन कालमें जर्मनी में गाँवको जमीनका मालिक उस गाँवका सारा समाज होता था। उसकी व्यवस्था भी संयुक्त होती थी। यह प्रथा संशोधित रूपमें मध्यकालतक जारी रहो। शाब्दिक अर्थ में, गाँवके ऐसे क्षेत्रको “ट्यूटानिक मार्क" कहा जाता था। स्पष्ट है कि उसमें प्रारम्भिक रूपका प्रातिनिधिक तत्त्व सन्निविष्ट था।

२. १८१६-७३, वकोल और राजनीतिज्ञ, १८४७ से १८५२ तक संसत्सदस्य ।

३. एंग्लो-सैक्सन कालकी राष्ट्रीय परिषद ।