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भेंट : नेटालके प्रधानमंत्रीसे

कुछ प्रतिष्ठित भारतीय ऐसे है, जो इस विशेषाधिकारका प्रयोग करनेके लिए पर्याप्त बुद्धि रखते हैं। हमारी नम्र रायमें, केवल यह कारण ही इस अति महत्त्वपूर्ण प्रश्नकी जांचके लिए आयोग नियुक्त करनेको काफी है। हम ऐसे आयोगके सामने उपस्थित होनेको तैयार ही नहीं हैं, हम तो उसका स्वागत करते हैं। बादमें,अगर निष्पक्ष न्यायाधिकरण निर्णय कर दे कि भारतीय लोग मताधिकारका प्रयोग करनेके योग्य हैं, तो क्या हमारा यह माँग करना बहुत ज्यादा होगा कि उन्हें उसका प्रयोग करने दिया जाये ? अगर हम विधेयकके सही मानी समझ सके हैं तो उसके कानूनमें परिणत हो जानेपर भारतीयोंका दर्जा निचलेसे-निचले देशी लोगोंके दर्जेसे भी नीचा हो जायेगा। क्योंकि वतनी तो शिक्षा प्राप्त करके मताधिकार पानेके योग्य बन सकेंगे किन्तु भारतीयोंको यह मौका कभी नहीं मिलेगा। विधेयक इतना सख्त है कि अगर ब्रिटिश लोकसभाका कोई भारतीय सदस्य भी यहाँ आये तो वह भी मतदाता बननेके योग्य न होगा।

हम जानते हैं कि इतने ही महत्त्वके दूसरे विषयोंपर भी आपको गंभीरतापूर्वक ध्यान देना है। अगर हम यह जानते न होते तो विधेयककी व्याख्यासे निकलनेवाले हानिकारक परिणामोंका और भी वर्णन करते। ये परिणाम ऐसे हैं कि सम्भवतःविधेयकके यशस्वी निर्माताओंका मंशा ऐसा कदापि न रहा होगा कि उससे ये परिणाम निकलते। इसलिए अगर हमें एक सप्ताहका समय दे दिया जाये तो हम विधानसभाके सामने अपना पक्ष अधिक पूर्ण रूपसे रख सकते हैं। तब हम अपना मामला श्रीमान् के हाथोंमें सौंप देंगे, और अपनी सारी उत्कटताके साथ श्रीमान्से प्रार्थना करेंगे कि श्रीमान् अपने प्रभावका उपयोग करके भारतीयोंके प्रति पूर्ण न्याय करायें। क्योंकि, हम केवल न्याय चाहते हैं; उससे अधिक और कुछ नहीं।

श्रीमान्ने हमारे शिष्टमण्डलको जो मुलाकात दी और हमारे प्रति जो शिष्टता प्रदर्शित की उसके लिए हम श्रीमानको धन्यवाद देते हैं।

भारतीय समाजकी ओरसे,

श्रीमान्के आज्ञाकारी सेवक,

मो० क० गांधी

तथा तीन अन्य

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, सं० १८१, खण्ड ४१