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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हमें हमारा लक्ष्य इतना न्यायपूर्ण जँचता है कि उसके समर्थनमें किसी दलीलकी आवश्यकता ही नहीं होगी।

हमें भरोसा है कि महाकृपालु महिमामयी सम्राज्ञीके प्रतिनिधिके रूपमें महानुभाव किसी ऐसे कानूनको अनुमति प्रदान नहीं करेंगे, जिससे कोई ऐसी व्यवस्था होती दीखती हो कि सम्राज्ञीका कोई भारतीय प्रजाजन कभी भी मताधिकारका प्रयोग करनेके योग्य नहीं बन सकता।

इस विषयमें हम महानुभावकी सेवामें योग्य अधिकारियोंकी मार्फत उचित प्रार्थनापत्र[१] भेजनेकी आशा करते हैं।

शिष्टमंडलको डर्बनमें मुलाकात देनेके लिए और महानुभावके शिष्टाचार तथा धैर्यके लिए हम महानुभावको बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी
और छः अन्य

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, सं॰ १७९, खण्ड १८९

 

४०. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानपरिषदको[२]

डर्बन
४ जुलाई, १८९४

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटाल निवासी भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थियोंको इस उपनिवेशमें रहनेवाले भारतीय समाजने आपकी परिषदके सामने यह नम्र प्रार्थनापत्र पेश करनेके लिए नियुक्त किया है। इसका सम्बन्ध मताधिकार कानून संशोधन विधेयकसे है, जिसका तीसरा वाचन विधानसभामें २ जुलाईको हुआ

  1. इसके बाद नेटालके गवर्नरको वस्तुतः कोई प्रार्थनापत्र नहीं भेजा गया। स्पष्ट है कि गांधीजी और उनके साथी भेजना तो चाहते थे, परन्तु घटनाचक्र आगे बढ़ गया। यह प्रार्थनापत्र भी अस्वीकृत हो गया और विधेयकको जल्दी-जल्दी सब अवस्थाओंसे गुजारकर सम्राज्ञीकी स्वीकृतिके लिए उपनिवेश मन्त्री लॉर्ड रिपनके पास भेजनेको तैयार कर लिया गया। इसलिए एक दूसरा प्रार्थनापत्र सर वॉल्टर हेली-हचिन्सनके जरिए लॉर्ड रिपनके पास उनके निर्णयके लिए लन्दन भेजना आवश्यक हो गया था; देखिए "प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको", १४–७–१८९४ से पूर्व।
  2. ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीय व्यवसायियोंकी ओरसे प्रार्थनापत्रोंके मसविदे तैयार करने और उनको पेश करनेवाले प्रमुख अभीकर्त्ता और अधिवक्ता माननीय हेनरी कैम्बेलने यह प्रार्थनापत्र विधान-परिषदके अध्यक्ष और सदस्योंको पेश किया था।