पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४५
प्रार्थनपत्र : नेटाल विधानपरिषदको

था। हम अपनी शिकायतोंका जिक्र विस्तारपूर्वक इस प्रार्थनापत्रमें नहीं करेंगे। उसके लिए हम आपका ध्यान भारतीयोंके उस प्रार्थनापत्रकी ओर सादर आकर्षित करते है, जो इस विधेयकके सम्बन्धमें विधानसभाको दिया गया था और जिसकी एक छपी हुई नकल सदस्योंके तत्काल देखनेके लिए इसके साथ नत्थी है। प्रार्थनापत्रपर लगभग ५०० भारतीयोंने हस्ताक्षर किये हैं। ये हस्ताक्षर सिर्फ एक ही दिनकी नगण्य अवधिमें किये गये थे। अगर प्राथियोंको अधिक समय मिलता तो विभिन्न जिलोंसे जो विवरण प्राप्त हुए हैं उनसे पूरा विश्वास होता है कि कमसे-कम दस हजार लोगोंने हस्ताक्षर किये होते। प्राथियोंको आशा थी कि विधानसभा प्रार्थनाके न्यायको महसूस करके उसे स्वीकार कर लेगी। परन्तु उनकी आशाएँ भग्न हो गई। इसलिए अब प्राथियोंने इस उद्देश्यसे आपकी सम्माननीय परिषदके सम्मुख उपस्थित होने का साहस किया है कि माननीय सदस्यगण उपर्युक्त प्रार्थनापत्रपर बारीकीसे विचार करें और न्याय तथा औचित्यके अनुरूप अपने संशोधन करनेके अधिकारका प्रयोग करें। कुछ प्राथियोंने निम्न सदनके कुछ माननीय सदस्योंसे उपर्युक्त प्रार्थनापत्रके सम्बन्धमें भेंट की थी। वे सब प्रार्थनापत्रमें कही गई बातोंको न्याययुक्त मानते दिखलाई पड़े थे। परन्तु आम भावना यह मालूम हुई थी कि वह प्रार्थनापत्र बहुत विलम्बसे दिया गया। इस बातकी बारीकियोंमें गये बिना, हम आदरके साथ निवेदन करते हैं कि अगर इसे सही मान लिया जाये तो भी विधेयकके कानूनके रूपमें परिणत हो जानेके परिणाम इतने गंभीर होंगे, और हमारी प्रार्थना इतनी न्यायपूर्ण और सौम्य है कि प्रार्थनापत्रपर विचार करते समय विलम्बका महत्त्व सदस्योंके सामने बिलकुल नहीं होना चाहिए था। सभ्य देशोंकी संसदोंके ऐसे उदाहरण खोज निकालना बहुत कठिन न होगा, जिनमें कि इससे कम जोरदार परिस्थितियोंमें समिति द्वारा विचार हो जानेके बाद भी विधेयकोंको संशोधित या अस्वीकार कर दिया गया है। ब्रिटिश

लॉर्ड सभाने आयरलैंडकी स्वतन्त्रताके विधेयकको[१] नामंजूर कर दिया था। उसका उदाहरण आपको बतानेकी जरूरत नहीं है। और न जिन परिस्थितियोंमें वह अस्वीकार किया गया था उनकी चर्चा करना ही जरूरी है। हमारा निवेदन है कि मताधिकार कानून संशोधन विधेयकका वर्तमान रूप इतना सर्वग्राही है कि उसके स्वीकार हो जानेपर कोई भी भारतीय, जिसका नाम इस समय मताधिकार-सूचीमें नहीं है, मतदाता नहीं बन सकता, फिर वह कितना ही योग्य क्यों न हो। प्रार्थियोंका विश्वास है कि आपकी सम्माननीय परिषद ऐसे विचारका समर्थन नहीं करेगी, और इसलिए, विधेयकको विधानसभाके पास पुनर्विचारके लिए भेज देगी।

१-१०
 
  1. १. यह विषेषक ग्लैडस्टन द्वारा सन् १८८६ में ब्रिटिश संसदमें प्रस्तुत किया गया था। इसमें आयरलैंडका प्रशासन आयरलैंडकी संसद द्वारा नियुक्त कार्य-पालक अधिकारीको सौंपनेको व्यवस्था तो थी,लेकिन कर आदि लगानेकी शक्तियों मुख्यतः ब्रिटिश सरकारके हाथमें हो रहने दी गई थीं। कॉमन्स सभामें इसका तीव्र विरोध हुआ था। सन् १८९३ में ग्लैडरटनने पुन: सतामें आनेपर ऐसा एक विधेयक फिर प्रस्तुत किया था जिसे कॉमन्स सभाने तो पारित कर दिया, पर लॉडे सभाने भारी बहुमतसे अस्वीकार कर दिया था।