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४२. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानपरिषदको

[१]


डर्बन

६ जुलाई, १८९४

सेवामें

माननीय अध्यक्ष तथा सदस्यगण

विधानपरिषद, नेटाल

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटालवासी भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

(१) नेटालवासी भारतीयोंने प्रार्थियोंको आपकी माननीय परिषदकी सेवामें "मताधिकार कानून संशोधन विधेयक" के सम्बन्धमें निवेदन करनेके लिए नियुक्त किया है।

(२) प्रार्थियोंको हार्दिक खेद है कि उन्होंने ४ जुलाई, १८९४ को माननीय श्री कैम्बेलके द्वारा जो प्रार्थनापत्र पेश किया था, वह नियमानुकूल नहीं था; इस कारण उन्हें फिरसे यह प्रार्थनापत्र पेश करके आपकी परिषदका अमूल्य समय नष्ट करना पड़ रहा है।

(३) प्रार्थी भारतीय समाजके विश्वासपात्र और जिम्मेदार सदस्य हैं। इस हैसियतसे वे आपकी परिषदका ध्यान आकर्षित करते हैं कि विचाराधीन विधेयकने भारतीय समाजमें व्यापक असंतोष और निराशाकी भावना पैदा कर दी है। जैसे-जैसे भारतीय समाजमें विधेयककी धाराओंका ज्ञान फैलता है, वैसे-वैसे प्रार्थियोंको लोगोंकी ये भावनाएँ अधिकाधिक सुनाई पड़ती जाती है : “सरकार जो माँ-बाप है हमें मार डालेगी, हम क्या करें?"

(४) प्रार्थी आपकी परिषदके प्रति अधिकसे-अधिक आदरके साथ निवेदन करते है कि यह भावना न सिर्फ तुच्छ गिनी जाने योग्य नहीं है, बल्कि अन्तःकरणसे निकली हुई है और परिषदके अत्यन्त गंभीर विचारके योग्य है।

(५) आपकी परिषदमें विधेयकके दूसरे वाचनकी बहसके समय यह बतानेका प्रयत्न किया गया था कि मत देना क्या चीज है, इसे भारतीय जानते ही नहीं हैं। प्रार्थी आदरपूर्वक निवेदन करते हैं कि यह सच नहीं है। वे भली-भाँति समझते हैं कि मत देनेकी सुविधासे क्या हक मिलता है और उसकी क्या जिम्मेदारी होती है। प्राथियोंकी केवल इतनी ही इच्छा है कि परिषद स्वयं यह देख सकती कि विधेयककी प्रगतिकी प्रत्येक अवस्थाको भारतीय समाज किस चिन्ता और उत्तेजनाके साथ देखा करता है।

  1. १. श्री हाजी मुहम्मद दादा तथा अन्य सात व्यक्तियोंका यह प्रार्थनापत्र, ६ जुलाई, १८९४ कोवमाननीय श्री कैम्बेलने नेटाल संसदको विधानपरिषदके सामने पेश किया था।