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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(६), प्रार्थी एक क्षणके लिए भी यह नहीं कहना चाहते कि भारतीय समाजके प्रत्येक व्यक्तिको ऐसा ज्ञान है और, इसलिए, उसकी ऐसी भावना है। परन्तु वे कहनेकी इजाजत चाहते हैं कि साधारण स्थिति यही है। वे यह भी कहना नहीं चाहते कि ऐसे भारतीय हैं ही नहीं जिन्हें मत देनेका अधिकार नहीं मिलना चाहिए। परन्तु वे इतना जरूर कहेंगे कि यह तो कोई कारण नहीं, जिससे कि सारेके-सारे भारतीयोंको मताधिकारसे वंचित कर दिया जाये।

(७) विधेयकके अमलसे जो परिणाम होंगे उनमें से कुछका परिषदके विचारार्थ निवेदन करनेकी प्रार्थी अनुमति चाहते हैं :

(क) जिन लोगोंके नाम इस समय मतदाता सूचीमें शामिल हैं, उन्हें मनमाने ढंगसे विधेयक सूचीमें कायम रखता है। परन्तु जिन लोगोंने अबतक उस अधिकारका प्रयोग करनेकी इच्छा नहीं की उनको वह हमेशाके लिए उससे वंचित कर देता है।

(ख) जब कि कुछ भारतीय पिताओंको मत देनेका हक होगा, उनके बच्चे कभी मत नहीं दे सकेंगे--भले ही बच्चे अपने पिताओंसे हर तरह आगे बढ़े हुए क्यों न हों।

(ग) विधेयक गिरमिटिया और स्वतन्त्र भारतीयों--दोनोंको एक ही तराजूसे तौलता है।

(घ) विधेयकका आधार राजनीतिक है। यह आधार हाल ही में विकसित हुआ दीखता है। उसे यदि थोड़ी देरके लिए छोड़ दिया जाये तो विधेयकसे ऐसा मालूम होगा कि इस समय भारतमें रहनेवाला एक भी भारतीय मताधिकारका प्रयोग करनेके योग्य नहीं है; और यूरोपीयों तथा भारतीयोंके बीच इतना अन्तर है कि भारतीय यूरोपीयोंके दीर्घ सहवासके बाद भी उस मूल्यवान अधिकारका प्रयोग करनेके योग्य नहीं बन सकते।

(८) प्रार्थी नम्रतापूर्वक पूछते हैं : एक पिता मतदाता है। वह अपने पुत्रकी शिक्षापर इसलिए भारी मात्रामें धन खर्च करता है कि पुत्र लोकपरायण बने। यदि इसके बाद भी अन्तमें उसे यह देखना पड़े कि पुत्रको वह अधिकार भी नहीं मिलता जिसे प्रातिनिधिक संस्थाओंवाले सब सभ्य देशोंमें पैदा हुए प्रत्येक सच्चे शिक्षित व्यक्तिका जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता है, तो क्या यह उचित होगा?

(९) प्रार्थी इस आशंकाकी विवेचना करनेको बहुत इच्छुक हैं कि एशियाइयोंको मताधिकार दे देनेसे वतनी सरकारकी बागडोर अन्तमें रंगदार लोगों, भारतीयोंके हाथमें चली जायेगी। परन्तु हमें लगता है कि इस विषयपर आपकी परिषदके सामने अपने नम्र विचार रखनेका अवसर यह नहीं है। प्रार्थी इतना ही कहकर सन्तोष करेंगे कि उनके विचारसे ऐसी परिस्थिति कभी बननेवाली ही नहीं है। और यदि दूर भविष्यमें कभी बन भी जाये तो भी उसके विरुद्ध कानून बनानेका समय अभी तो नहीं आया है।