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पत्र: 'नेटाल मर्युरी' को

कहनेको होगा ही नहीं। इस आधुनिक कालमें जिस चीजके दो पहलू न हों वह तो आश्चर्यजनक -- मैं कहनेपर था, मानवोत्तर-- वस्तु होगी। इस सिद्धान्तके आधार पर, सर जॉर्ज चेजनी अकेले ही ऐसे लेखक नहीं हैं, जो आपका उद्देश्य सिद्ध करेंगे। आखिरकार, सर हेनरी समनर मेन भी तो मनुष्य ही थे। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि उनके सिद्धान्तों और निष्कर्षोंका खंडन किया जाये। किसी मर्त्यका "विरोधी तत्त्वोंके द्वन्द्व" से बचे रहना संभव नहीं दिखाई देता। फिर भी, मैं इस समय मामलेकी दूसरी बाजू पेश नहीं करूँगा, कभी और भविष्यमें उसपर चर्चा करनेकी इजाजत चाहूँगा।

यह पत्र लिखनेका उद्देश्य आपको अचानक एक खबर देकर “ विस्मित करना" है। मुझे यह कहते हर्ष है कि मैसूर राज्यने अपनी प्रजाको राजनीतिक मताधिकार दे दिया है। मैं समाचारपत्रोंकी रिपोर्टसे निम्नलिखित अंश उद्धृत कर रहा हूँ:

दीवानने अब जिस प्रणालीको व्याख्या की है, उसके अनुसार १०० रुपये या इससे ज्यादा लगान या १३ रुपये और इससे ज्यादा 'मोहातर्फा [१] देनेवाले सब जमीन-मालिकोंको प्रतिनिधि सभाके सदस्य चुननेका या स्वयं सदस्य बननेका अधिकार है। इसके अलावा, किसी भी भारतीय विश्वविद्यालयके ऐसे सब स्नात- कोंको, जो साधारणतः राज्यके किसी ताल्लुके रहते हों, और जो सरकारी नौकर न हों, निर्वाचन करने और निर्वाचित होने का भी अधिकार प्रदान कर दिया गया है। इस प्रकार सम्पत्ति तथा बुद्धि दोनोंके प्रतिनिधि धारासभामें होंगे। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि सार्वजनिक संघ, नगरपालिकाएँ और स्थानीय निकाय भी अपने सदस्योंका चुनाव कर सकते हैं। सदस्योंकी कुल संख्या ३४७ निश्चित की गई है और इन सदस्योंका चुनाव लगभग ४,००० निर्वाचक करेंगे।

महोदय, मैं आपसे सद्भावनाका अनुरोध करता हूँ, और पूछता हूँ कि क्या दोनों समाजोंके भेद-सूचक तत्त्वोंको, जो अकसर बहुत खींच-तानपर आधारित होते


कभी मताधिकारका प्रयोग नहीं किया। भारतीयोंका कहना था कि वे अपने ग्राम-समाजोंमें प्राचीन कालसे ही मताधिकारका प्रयोग करते आ रहे हैं। परन्तु नेटाल मयुरीने भारतीयोंके इस दावेका प्रतिवाद किया था। सर हेनरी समनर मेनने अपनी पुस्तक विलेज कम्यूनिटीज़ इन द ईस्ट ऐंड वेस्टमें जो यह मत व्यक्त किया है कि भारतीय लगभग स्मरणातीत कालसे प्रातिनिधिक संस्थाओंसे परिचित है, उसका भी उसने प्रतिवाद किया था। उसका कथन था कि भारतीयोंका राजनीतिक प्रतिनिधित्वसे कोई सम्बन्ध नहीं रहा; जो-कुछ सम्बन्ध रहा है वह लगान-पट्टे के कानूनो पहलके सिलसिलेमें था। उसकी दलील यह थी कि ग्राम्य सामाजिक जीवन तो सभी आदिम लोगोंमें समान रूपसे प्रचलित था और उससे अगर कोई बात सिद्ध होती है तो वह है उन लोगोंका पिछड़ापन । उसने सर जॉर्ज चेज़नीका नाइंटीन्थ सेंच्युरीमें व्यक्त किया हुभा यह मत उदृत किया था कि भारतीय भव भी अपनी राजनीतिक बाल्यावस्थामें हैं। उत्तरमें गांधीजीने यह पत्र लिखा था।

  1. १. मकान कर।