पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बारह

पहुँच चुकी हैं। फिर भी अभी बहुत-से और पत्रोंकों एकत्र करता और सबको प्रकाशित कर देना शेष है।

इस तरह, गांधीजीके सारे लेखों, भाषणों और पत्रोंको, वे उनके जीवनके किसी भी कालके और कहीं भी उपलब्ध क्‍यों न हों, एकत्र करने और सबको पूरे-पूरे तथा तिथि-क्रमसे प्रकाशित कर देनेका कोई प्रयत्न अबतक नहीं किया गया। यह कार्य खानगी तौरपर काम करनेवाले व्यक्तियों या संस्थाओंके साधनोंके परे था। फलतः भारत सरकारने इसे उठा लिया है।

गांधीजीने दक्षिण आफ्रिकाके आरम्मिक कालमें भी लेखों, भाषणों और पत्रोंके रूपमें जो सामग्री प्रस्तुत की थी उसकी मात्रा भी बहुत बड़ी है। सम्भवतः इस कालसे सम्बन्ध रखनेवाली सामग्री लगभग एक दर्जन खण्डोंमें पूरी होगी। साधारण अनुमानके अनुसार, सम्पूर्ण ग्रंथमाला सत्तरसे भी अधिक खण्डों की हो सकती है।

इसके अतिरिक्त, उनकी वाणी एक ही भाषातक सीमित नहीं थी। उन्होंने गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी — तीन भाषाओंमें लिखा और भाषण दिये हैं। फलतः सम्पादकोंका काम केवल संग्रह करनेका नहीं है, बल्कि गुजराती और हिन्दीसे अंग्रेजीमें तथा गुजराती और अंग्रेजीसे हिन्दीमें — जिन दो भाषाओंमें ग्रंथमाला प्रकाशित की जायेगी — शुद्ध अनुवाद करनेका भी है। काम इस कारण भी उलझा हुआ है कि गांधीजीके जीवनका जो आरम्मिक भाग दक्षिण आफ़िकामें व्यतीत हुआ था, उसकी सामग्री भारतके बाहर — लंदनके औपनिवेशिक कार्यालयके कागज-पत्रोंमें और स्वयं दक्षिण आफ़िकामें पड़ी हुई है। दक्षिण आफ्रिकाके मूल साधन-सूत्रोंकी सुलभता अपेक्षा-कृत कठिन है। गांधीजीने सरकारी अधिकारियोंकों जो-कुछ लिखा था, उसके अलावा 'इंडियन ओपिनियन' में भी बहुत लिखा था। 'यंग इंडिया', 'नवजीवन' और 'हरिजन' में उनके बादके लेखोंसे भिन्न, 'इंडियन ओपिनियन' के लेखोंमें उनका नाम नहीं छपता था। उनके लेखोंकों पहचानने और प्रमाणित करानेमें सम्पादकोंको श्री हेनरी एस° एल° पोलक और श्री छगनलाल गांधीसे बहुमूल्य सहायता मिली है। इन दोनों महानुभावोंका न केवल 'इंडियन ओपिनियन' से वरन्‌ दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके दूसरे कामोंसे भी घनिष्ठ सम्बन्ध था।

कामके स्वरूपको देखते हुए इस संग्रहको पूर्ण अथवा अन्तिम माननेका दावा नहीं किया जा सकता। आगेकी खोजसे ऐसे कागज-पत्रोंका पता चल सकता है जो अभी प्राप्य नहीं हैं। पूर्णता लानेके लिए अनिश्चित कालतक रुके रहना उचित न होता। इसमें सुधार करनेका कार्य भविष्यके लिए ही छोड़ देना उचित है। फिर भी, हालमें जो भी सामग्री मिल सकती है उस सबको इकट्ठा करने और परखनेका तथा छोटी-छोटी टिप्पणियोंके साथ, ताकि मूलको समझनेमें पाठकोंको मदद मिले, प्रकाशित कर देनेका प्रत्येक प्रयत्न किया जा रहा है। अगर कोई सामग्री इतने विलम्बसे मिली, कि उसे उपयुक्त खण्डमें शामिल करना सम्मव ही न हो, तो उसे अलग प्रकाशित करनेका विचार है।

जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, सामग्रीको तारीखोंके क्रमसे रखा जायेगा। एक तारीखकी सारी सामग्री — वह लेख, भाषण या पत्र, कुछ भी हो — एक साथ