पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६१
प्रार्थनापत्र : लोर्ड रिपनको

(२७) इस तरह स्थिति यह है कि जब उपनिवेशका शासन एक अधिक स्वतन्त्र संविधानके अनुसार होने लगा है, और जब इस स्वतन्त्रताका लाभ प्राथियोंको भी मिलना चाहिए था, तब प्रथम उत्तरदायी मन्त्रिमण्डलने हमको कम स्वतन्त्र करनेका,हम सब लोगोंका मताधिकार छीन लेनेका प्रयत्न किया है। यह बड़े दुःखकी बात है। यह देखते हुए कि पहलेके शासन में प्राथियोंके अधिकार छीननेके अपेक्षाकृत बहुत दुर्बल प्रयत्नोंको सम्राज्ञी-सरकारने प्रश्रय नहीं दिया, प्रार्थियोंको पूरी आशा है कि वर्तमान' प्रयत्नकी भी वही गत होगी और प्राथियोंके प्रति न्याय किया जायेगा।

(२८) मताधिकार विधेयकसे अप्रत्यक्ष सम्बन्ध रखनेवाले दूसरे दुःखदायी परिणाम इतने है कि उन सबका उल्लेख नहीं किया जा सकता। फिर भी, प्रार्थी उनमें सकुछका विवेचन करनेकी इजाजत चाहते हैं।

(२९) यह तो विदित है कि उपनिवेशके यूरोपीयों और भारतीयोंके बीच एक चौड़ी खाई है। भारतीयोंसे यूरोपीय द्वेष करते हैं और उन्हें दुतकारते हैं। उन्हें अकसर सताया और परेशान किया जाता है। प्रार्थियोंका निवेदन है कि मताधिकार-विधेयकसे इस तरहकी भावना अधिक तीव्र होगी। इसके लक्षण तो अभीसे ही दिखाई पड़ने लगे हैं। इसकी सचाई साबित करने के लिए प्रार्थी उक्त तारीखोंके समाचारपत्रोंकी ओर, और दोनों सदनोंकी बहसोंकी ओर भी, महानुभावका ध्यान खींचते हैं।

(३०) दूसरे वाचनकी बहसके दौरान कहा गया था कि भारतीयोंपर जो प्रतिबन्ध लगाया गया है,उससे उपनिवेशके कानून बनानेवालोंपर अधिक जिम्मेदारी आ पड़ेगी और भारतीयोंपर कोई प्रतिबन्ध न होते हुए उनके हितोंका जितना संरक्षण हो सकता है, उससे अब ज्यादा होगा। प्रार्थियोंका निवेदन है कि यह अबतकके सारे अनुभवके प्रतिकूल है।

(३१) कुछ माननीय सदस्योंका खयाल था कि भारतीयोंको नगरपालिकाके चुनावोंमें भी मत प्रदान नहीं करने देना चाहिए। बहसके समय उत्तरदायी क्षेत्रों में यह व्यापक रूपसे मशहूर था कि इस प्रश्नपर भविष्यमें, किन्तु शीघ्र ही, ध्यान दिया जायेगा। भावना ऐसी दिखलाई पड़ती है कि मताधिकार-विधेयक तो अँगुली है, जिसे पकड़ लेनेपर पहुँचा पकड़ने में देर नहीं लगेगी।

(३२) महानुभाव जानते हैं कि गिरमिटमें बँधकर आये हुए भारतीय अगर उपनिवेशमें बसना चाहें तो उनपर कर लगानेका इरादा किया गया है। कहा गया है कि कर इतना भारी होना चाहिए कि उनका उपनिवेशमें रहना निरर्थक हो जाये--वे रुक ही न सकें, और उनका उपनिवेशियोंके साथ प्रतिद्वन्द्विता करना सम्भव ही न रहे। प्रार्थियोंका मताधिकार छीन लेनेपर उनके हितोंका बेहतर संरक्षण कैसे होगा, इसका यह दूसरा उदाहरण है !

(३३) सरकारी नौकरी विधेयकपर बहसके समय कुछ माननीय सदस्योंने कहा था कि चूंकि भारतीयोंसे मताधिकार छीन लिया जानेवाला है, इसलिए उन्हें सरकारी नौकरियोंमें भरती होनेसे भी रोक देना उचित ही होगा। इस आशयका

१-११