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४७. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

पो० ऑ० बॉक्स २५३

डर्बन

२७ जुलाई, १८९४

गोपनीय

सेवामें

माननीय श्री दादाभाई नौरोजी, संसद-सदस्य

श्रीमन्,

अपने इसी माहकी १४ ता० के पत्रके सिलसिलेमें आपको नीचे लिखी जानकारी दे रहा हूँ:

ब्रिटिश सरकारके नाम जिस प्रार्थनापत्रकी एक नकल आपको भेजी जा चुकी है वह, मै सुनता हूँ, पिछले सप्ताह भेज दिया गया है।

अगर खबर देनेवालेकी बात सही है, तो महान्यायवादी श्री एस्कम्बने[१] इस आशयकी रिपोर्ट दी है कि विधेयक स्वीकार करनेका एकमात्र उद्देश्य एशियाइयोंको देशी लोगोंके शासनका नियंत्रण करनेसे रोकना है। परन्तु सच्चा कारण केवल इतना है--वे भारतीयोंपर ऐसे बन्धन और निषेध लगाना चाहते हैं और उनकी स्थिति ऐसी अपमानास्पद बना देना चाहते हैं कि उपनिवेशमें रुकना उनके लिए लाभप्रद न रह जाये। फिर भी वे सब भारतीयोंको हटाना नहीं चाहते। जो भारतीय अपने साधनोंसे आते हैं, उन्हें तो वे निश्चय ही नहीं हटाना चाहते और गिरमिटिया भारतीयोंकी जरूरत बुरी तरहसे महसूस करते हैं। परन्तु उनके वशमें हो तो वे गिर-मिटिया मजदूरोंको अवधि समाप्त होनेपर भारत लौट जानेके लिए बाध्य करेंगे। पक्की शेर-बकरीकी साझेदारी ! वे खूब जानते हैं कि एकदम ऐसा करना उनके वशकी बात नहीं है। इसलिए उन्होंने मताधिकार विधेयकसे इसका सूत्रपात किया है। वे इस प्रश्नपर ब्रिटिश सरकारका रुख परखना चाहते हैं। विधानसभाके एक सदस्यने मुझे लिखा है कि उसे विश्वास नहीं है, ब्रिटिश सरकार विधेयकको मंजूर करेगी। कहना न होगा, भारतीय समाजके लिए यह कितना जरूरी है कि विधेयकको स्वीकृति न दी जाये।

भारतीयोंके लिए नेटाल बुरी जगह नहीं है। बहुत-से भारतीय व्यापारी यहाँ इज्जतके साथ जीविकोपार्जन करते हैं। अगर विधेयक कानून बन गया तो वह भारतीयोंकी आगेकी प्रवृत्तियोंपर जबर्दस्त वार करनेवाला होगा।

  1. १. सर टैरी एस्कम्ब (१८३८-९९); १८९७ में नेटालके प्रधान-मन्त्री । इन्होंने गांधीजीको नेटाल उच्चतम न्यायालयके वकील समुदायमें प्रवेश देनेको पैरवी की थी।