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खुली चिट्ठी

अच्छा है क्योंकि वे कुछ भी करें, उनकी चमड़ीका रंग तो गोरा होनेवाला नहीं है। परन्तु, अगर उसका आधार कुछ और है — उनके सामान्य चरित्र और उनकी दक्षता के सम्बन्धमें अज्ञान है — तब तो वे उपनिवेशके यूरोपीयोंके हाथों अपने उचित अधिकार प्राप्त करनेकी आशा जरूर कर सकते हैं।

मेरा निवेदन है कि ४०,००० भारतीयोंसे उपनिवेश क्या काम ले यह उपनिवेशियोंके लिए एक बहुत ही विचारणीय प्रश्न है। और जिन लोगोंके हाथमें शासनकी बागडोर है, जिन्हें जनताने कानून बनानेके अधिकार सौंप रखे हैं, उनके लिए तो यह विशेष रूपसे विचारणीय है। इन ४०,००० भारतीयोंको उपनिवेशसे निकाल देना तो, निस्सन्देह, एक असम्भव कार्य है। इनमें से अधिकतर अपने परिवारोंके साथ यहाँ बस गये हैं। एक ब्रिटिश उपनिवेशमें जो कानून बनाये जा सकते हैं उनमें से कोई भी कानून बनानेवालोंको यह अधिकार नहीं दे सकता कि वे उन लोगोंको उपनिवेशसे खदेड़ दें। हाँ, शायद यह हो सकता है कि आगे आनेवाले प्रवासियोंको रोकनेका कोई उपाय निकाला जा सके। परन्तु, इसके अलावा भी, मेरा सुझाया हुआ प्रश्न आपका ध्यान खींचनेके लिए और आपसे इस पत्रको निष्पक्ष भावसे पढ़नेका अनुरोध करनेके लिए काफी गम्भीर है।

यह तो आपको ही कहना है कि आप उन्हें सभ्यताके पैमानेसे नीचे गिरायेंगे। या ऊपर उठायेंगे। क्या आप उन्हें उस स्तरसे नीचे गिरा देंगे जिसपर अपनी वंश परम्पराके कारण उन्हें होना चाहिए? आप उनके दिलोंको अपनेसे दूर कर देंगे या अपने ज्यादा नजदीक खींचेंगे? सारांश यह कि आप उनपर अत्याचारपूर्वक शासन करेंगे या सहानुभूतिके साथ?

आप लोकमतको ऐसा बना सकते हैं कि द्वेष दिन-दिन बढ़ता जाये। और अगर आप चाहें तो उसे ऐसा भी बना सकते हैं कि द्वेष ठंडा पड़ने लगे।

अब मैं प्रश्नकी चर्चा निम्नलिखित शीर्षकोंमें करूँगा:

(१) क्या भारतीयोंका नागरिक बनकर उपनिवेशमें रहना वांछनीय है?

(२) भारतीयोंकी हस्ती क्या है?

(३) क्या उनके साथ इस समय किया जानेवाला व्यवहार सर्वोत्तम ब्रिटिश परम्पराओंके, या न्याय तथा नीतिके सिद्धान्तों, या ईसाइयतके सिद्धान्तोंके अनुरूप है?

(४) शुद्ध भौतिक और स्वार्थमय दृष्टिसे, क्या उनके एकाएक या धीरे-धीरे उपनिवेश से चले जानेसे उपनिवेशको ठोस, चिरस्थायी लाभ होगा?

पहले प्रश्नपर विचार करते हुए, सर्व प्रथम मैं भारतीय मजदूरोंकी चर्चा करूँगा। उनमें से अधिकतर गिरमिटिया बनकर उपनिवेशमें आये हैं।

जो लोग जानकार समझे जाते हैं, जान पड़ता है, उन्होंने मंजूर कर लिया है। कि गिरमिटिया भारतीय उपनिवेशकी भलाईके लिए बिलकुल अपरिहार्य हैं। छोटे- छोटे काम करनेवाले नौकरोंके रूपमें हो या हजूरियोंके, रेलवे कर्मचारियोंके रूपमें

 

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