हो या बागवानोंके — उनका आना उपनिवेशके लिए लाभदायी ही हुआ है। देशी लोग जो काम नहीं कर सकते, या नहीं करते, उसे गिरमिटिया भारतीय खुशी से और अच्छी तरह करते हैं। यह तो स्पष्ट है कि इस उपनिवेशको दक्षिण आफ्रिकाका उद्यान-उपनिवेश बनाने में भारतीयोंकी सहायता काम आई है। उन्हें चीनीकी जायदादोंसे हटा लिया जाये तो उपनिवेशके इस मुख्य उद्योगकी हालत क्या होगी? और न यही कहा जा सकता है कि निकट भविष्यमें देशी लोग वह काम सँभाल सकेंगे। दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य इसका एक उदाहरण है। देशी लोगोंके सम्बन्धमें अपनी तथाकथित जोरदार नीतिके बावजूद, वह धूलभरा रेगिस्तान-सा ही बना हुआ है, हालाँकि जमीन बहुत उपजाऊ है। वहाँ सस्ते मजदूर कैसे प्राप्त किये जायें, यह समस्या हर दिन ज्यादा गम्भीर होती जा रही है। उल्लेखनीय सिर्फ एक नेलमेपियस जायदादका बाग है। और क्या उसकी भी सफलताका सारा श्रेय भारतीयोंको ही नहीं है? चुनाव सम्बन्धी एक भाषण में कहा गया है:
ये सज्जन और कोई नहीं, श्री गारलैंड हैं। बेचारे भारतीयोंको वे लोग भी तिरस्कारके साथ "कुली" कहकर पुकारते हैं, जिन्हें ज्यादा अच्छी जानकारी होनी चाहिए। इन "कुलियों" से प्राप्त होनेवाली ऐसी अमूल्य सहायताके बावजूद उक्त माननीय सज्जन भारतीयोंकी उपनिवेशमें बसनेकी वृत्तिपर कृतघ्नताके साथ खेद प्रकट करते जाते हैं।