पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८३
खुली चिट्ठी


व्यावहारिक धर्मके जो हल ब्राह्मणोंने निकाले हैं, वे हैं — तप, दान, यज्ञ और ईश्वरका ध्यान। परन्तु आध्यात्मिक जीवनके व्यावहारिक प्रश्नोंके अलावा धर्मकी बौद्धिक समस्याएँ भी हैं, जैसे कि दुनियाकी बुराईके साथ ईश्वर की अच्छाईका समन्वय और जीवनमें सुख और दुःखका विषम विभाजन। ब्राह्मणों के दर्शनने इन समस्याओंके, और अधिकतर दूसरी भारी समस्याओंके हल खोज निकाले हैं, जब कि यूनानी और रोमन ऋषियों, मध्यकालीन आचायों और आधुनिक वैज्ञनिकोंको (टाइपमें फर्क मैंने किया है) इन्होंने उलझन में डाले रखा है। उन्होंने सृष्टिकी, व्यवस्था और विकासकी विभिन्न कल्पनाओं में से प्रत्येकका विस्तार किया है, और आधुनिक शरीर-शास्त्रियोंके विचार नई सूझबूझके साथ हमें कपिलके विकास-सिद्धान्तकी ही ओर वापस ले जानेवाले हैं। (यहाँ भी टाइपका फर्क मेरा ही है)। १८७७में भारतकी विविध भाषाओं में १,१९२ धार्मिक ग्रंथ और, उनके अलावा, ५६ ग्रंथ तत्त्वज्ञानपर प्रकाशित हुए। १८८२ धार्मिक ग्रंथोंकी कुल संख्या १,५४५ और मनोविज्ञान और नीतिशास्त्र तत्त्वज्ञानके ग्रंथोंकी १५३ तक बढ़ गई।

भारतीय दर्शनके बारेमें मैक्समूलरने निम्नलिखित विचार व्यक्त किये हैं। (यह अंश और कुछ दूसरे अंश भी मताधिकार-प्रार्थनापत्र में अंशतः या पूर्णतः उद्धृत किये गये हैं):

अगर मुझसे पूछा जाये कि किस देशके मानवी-मस्तिष्कने अपने कुछ सर्वोत्तम गुणोंका अधिकसे-अधिक पूर्ण विकास किया हैं, जीवनकी बड़ीसे-बड़ी समस्याओंपर अत्यन्त गंभीरता के साथ विचार किया है और उनके ऐसे हल प्राप्त किये हैं, जो प्लेटो और काण्टके दर्शनशास्त्रोंका अध्ययन किये हुए लोगोंके लिए भली-भाँति विचार करने योग्य हैं, तो मैं कहूँगा कि वह देश भारत है। और अगर मुझे अपने-आपसे पूछना हो कि यूरोपके हम लोग, जो लगभग यूनानी, रोमन और एक सेमिटिक जाति — यहूदी — के विचारों मात्रपर ही पालित-पोषित हुए हैं, वह संशोधन कहाँके साहित्यसे प्राप्त कर सकते हैं, जो हमारे जीवनको अधिक परिपक्व, अधिक व्यापक, अधिक सार्वलौकिक, दरअसल अधिक सच्चे रूप में मानवीय — न केवल इस जन्मके लिए बल्कि तमाम जन्मोंके लिए रूपान्तरित व शाश्वत जीवन — बनानेके लिए नितान्त आवश्यक है, तो मैं पुनः भारतकी ही ओर संकेत करूँगा।

जर्मन दार्शनिक शोपेनहारने उपनिषदोंमें निहित भारतीय दर्शनकी भव्यतापर यह साक्षी दी है:

एक-एक वाक्यसे मौलिक और उदात्त विचार उदित होते हैं और सम्पूर्ण वस्तु एक उच्च, पवित्र तथा उत्कट भावनासे व्याप्त है। हम भारतीय वातावरण और सगोत्र आत्माओंके मौलिक विचारोंमें लीन हो जाते हैं।. . .