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खुली चिट्ठी


स्थान मिला। आठवीं और नौवीं शताब्दीमें अरब लोग उनके शिष्य बन गये।

मैं फिर सर विलियमका हो उद्धरण दे रहा हूँ:

बीजगणित और अंकगणितमें ब्राह्मणोंने पश्चिमी सहायता के बिना स्वतन्त्र रूपसे ऊँचे दर्जेकी दक्षता प्राप्त कर ली थी। दशमलव प्रणालीके आविष्कारका उनका हमपर ऋण है। . . . अरबोंने ये अंक हिन्दुओंसे प्राप्त करके यूरोपमें फैलाये। . . . गणित और यंत्रशास्त्र पर भारतीय भाषाओंमें प्रकाशित ग्रंथोंकी संख्या १८७७में ८९ और १८८२में १६६ थी।

वही प्रतिष्ठित इतिहासकार आगे लिखता है :

ब्राह्मणोंने चिकित्साशास्त्रका विकास भी स्वतन्त्र रूपसे किया। . . . पाणिनिके व्याकरणमें विशेष रोगोंके जो नाम पाये जाते हैं, उनसे मालूम होता है कि चिकित्साशास्त्रका विकास उनके काल (सन् ३५० ईसापूर्व) के पहले हो चुका था। . . . अरब चिकित्सा प्रणालीकी आधारशिला संस्कृत ग्रंथोंके अनुवादोंपर रखी गई। . . . यूरोपीय चिकित्साशास्त्रका आधार १७वीं शताब्दी तक अरब चिकित्साशास्त्र ही था। १८७७ में भारतीय भाषाओं में चिकित्साशास्त्रपर १३० और १८८२ में २१२ ग्रंथ प्रकाशित हुए थे। प्राकृतिक विज्ञानपर जो ८७ ग्रंथ प्रकाशित हुए वे इनमें शामिल नहीं हैं।

युद्ध-कलापर लिखते हुए लेखक कहता है:

ब्राह्मण लोग केवल चिकित्साशास्त्रको ही नहीं, बल्कि युद्धकला, संगीत और शिल्पकलाको भी अपने देव-प्रेरित ज्ञानके पूरक अंग समझते थे। . . . संस्कृत महाकाव्योंसे सिद्ध होता है कि युद्धकलाको ईसाके जन्मके पूर्व ही एक सर्वमान्य विज्ञानकी अवस्था प्राप्त हो चुकी थी। बादमें लिखे गये अग्निपुराणमें लम्बे-लम्बे परिच्छेदों में उसका व्यवस्थित वर्णन किया गया है।
भारतीय संगीतकलाका प्रभाव अधिक व्यापक हुए बिना रह नहीं सकता था। . . . यह स्वरलिपि ब्राह्मणों के पाससे ईरानियोंके द्वारा अरब पहुँची। वहाँसे गाइडो ड आरेजोने ११वीं शताब्दी के आरम्भ में इसे यूरोपीय संगीतमें दाखिल किया।

स्थापत्य-कलापर वही लेखक कहता है:

भारतके बौद्ध लोग पत्थरको भवन-निर्माण कलामें अत्यन्त कुशल थे। उनके विहार और मठ बाईस शताब्दियोंके कला-इतिहासका परिचय देनेवाले हैं, जो पर्वतशिलाओंको काट कर बनाये गये प्राचीनतम गुहा-मन्दिरोंसे लेकर ईंट-चूनके बने, झिलमलाते हुए और अलंकारोंसे अति-सज्जित आधुनिकतम जैन मंदिरों तकमें प्रदर्शित है। असम्भव नहीं कि यूरोपके गिरजाघरोंकी मीनारें