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खुली चिट्ठी


नाट्यकला में भी भारतीय ओछे नहीं रहे। सबसे प्रसिद्ध भारतीय नाटक 'शकुन्तला' का वर्णन गेटेने इस प्रकार किया है:

यदि तुम नववसन्तके पुष्प और प्रौढ़
मधुऋतुकी फलराशि
और हृदयको आनन्दविभोर, मुग्ध, पुष्ट
और तुष्ट करनेवाले सर्वस्वको
देखना चाहते हो;
यदि तुम स्वर्गलोक और भूलोकको
एक ही नाममें एकीभूत हुआ
देखना चाहते हो;
तो हे शकुन्तला! मैं तेरा नाम लेता हूँ —
और इतना ही कहना सब कुछ कह देना है।

भारतीय चारित्र्य और सामाजिक जीवनके बारेमें तो राशि के राशि प्रमाण मौजूद हैं। मैं संक्षिप्त उद्धरण मात्र दे सकता हूँ।

इंटरकी 'इंडियन एम्पायर' नामक पुस्तकसे ही मैं निम्नलिखित अंश उद्धृत करता हूँ:

यूनानका प्रतिनिधित्व करनेवाले यात्री (मैगेस्थनीज) ने भारत में गुलामीके अभाव और स्त्रियोंके सतीत्व तथा पुरुषोंकी वीरताको कौतूहलमय सराहनाके साथ देखा। पराक्रममें वे एशियाके शेष सब लोगोंसे बढ़े-चढ़े थे; उन्हें अपने दरवाजों में ताले लगाने की जरूरत नहीं होती थी; सबसे ऊपर, कोई भारतीय कभी झूठ बोलता नहीं पाया जाता था। वे संयमी और उद्योगी थे, अच्छे किसान और कुशल कारीगर थे। वे शायद ही कभी मुकदमेबाजीका आश्रय लेते थे और अपने स्थानके मुखियोंके अधीन शान्तिपूर्वक जीवन-निर्वाह करते थे। राजाके शासनका चित्र मैगेस्थनीजने लगभग वैसा ही खींचा है, जैसा कि मनुने बताया है — परिषदों और सैनिकोंकी वंशपरम्परागत जातियोंके साथ। ग्राम-व्यवस्थाका वर्णन बड़ी भली-भाँति किया गया है। . . . प्रत्येक छोटा-छोटा गाँव उस यूनानीको एक स्वतन्त्र गणराज्य दीखता था। (टाइपका अन्तर मैंने किया है)।

बिशप हेबर[१] भारतीय जनताके बारेमें कहते हैं :

जहाँतक उनके स्वाभाविक चारित्र्यका सम्बन्ध है, समग्रतः मेरा बहुत अनुकूल अभिप्राय बना है। वे बड़े ऊँचे और बहादुराना साहसवाले पुरुष हैं —
 
  1. १. रेजोनाल्ड हेवर (१७८३-१८२६); कलकत्ताके विशप और वहाँ बिशप्स कालेज के संस्थापक; इन्होंने भारतकी विस्तृत यात्राएँ की थीं।