पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८९
खुली चिट्ठी


बच्चोंके प्रति माता-पिताके, और माता-पिता के प्रति बच्चोंके उस प्रेमका कोई प्रतिरूप इंग्लैंड में शायद ही मिलेगा। हमारे पूर्वीय नागरिक बन्धुओंमें मातृ-पितृ प्रेम और अपत्य प्रेमका वह स्थान है जो इस देशमें स्त्री-पुरुषके बीच की वासनाने ले रखा है।

और श्री पिनकॉटका खयाल है कि:

तमाम सामाजिक बातोंमें अंग्रेज लोग हिन्दुओंके गुरु बननेके प्रयत्न करने की अपेक्षा उनके चरणोंके पास बैठने और शिष्य बनकर उनसे शिक्षा लेनेके ही बहुत अधिक योग्य हैं।

एम° लुई जेकोलियट कहता है:

प्राचीन भारतकी भूमि, मानव जातिका पालना, तेरी जय हो! जय हो, अयि कुशल धात्री, तेरी, जिसे शताब्दियोंके क्रूर आक्रमण अबतक विस्मृतिकी धूलमें दबा नहीं सके। अयि श्रद्धा, प्रेम, काव्य और विज्ञानकी मातृभूमि, तेरी जय हो! हम अपने पश्चिमके भविष्यमें तेरे अतीतके पुनर्जन्मका स्वागत करें!

विक्टर ह्यगो कहता है:

इन राष्ट्रों — फ्रांस और जर्मनीने यूरोपका निर्माण किया है। पश्चिमके लिए जर्मनी जो कुछ है, वही पूर्वके लिए भारत है।

इसमें यह तथ्य भी जोड़ लीजिये: भारतने बुद्धको जन्म दिया है, जिनके जीवनको कुछ लोग तमाम मनुष्योंके जीवनोंमें श्रेष्ठ और पवित्रतम मानते हैं, और कुछ केवल ईसाके जीवनसे दोयम बताते हैं; भारतने ऐसे अकबरको जन्म दिया है, जिसकी नीतिका ब्रिटिश सरकारने इनेगिने संशोधनोंके साथ अनुसरण किया है; अभी थोड़े ही वर्ष पहले भारतमें एक ऐसे पारसी बैरोनेट[१] सज्जन थे जिन्होंने अपनी दानशीलनासे न केवल भारतको वरन् इंग्लैंडको भी आश्चर्य चकित कर दिया था; भारतने पत्रकार क्रिस्टोदास पालको जन्म दिया है, जिसकी वर्तमान वाइसराय लॉर्ड एलगिनने यूरोपके सर्वश्रेष्ठ पत्रकारोंसे तुलना की है; भारतने न्यायमूर्ति मोहम्मद और न्यायमूर्ति मुतुकृष्ण अय्यर[२] को जन्म दिया है, जो दोनों ही भारतके उच्च न्यायालयोंके न्यायधीश हैं और जिनके फँसले भारतके उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशोंके आसनोंको सुशोभित करनेवाले भारतीय तथा यूरोपीय न्यायाधीशों के निर्णयोंमें सबसे योग्य माने गये हैं; और, आखिरमें, भारतमें बदरुद्दीन[३]

 
  1. १. उपसामन्तक।
  2. २. उल्लेख सर टो° मुतुस्वामी अय्यरका है।
  3. ३. बदरुद्दीन तैयबजी (१८४४-१९०६): बम्बई प्रेसीडेंसी एसोसिएशनके कर्मठ सहायक और उसके वास्तविक अध्यक्ष। कांग्रेसके मद्रास अधिवेशनके अध्यक्ष, १८८७ । बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, १८९५। दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके साथ दुर्व्यवहार विरोधी आन्दोलनके जोरदार समर्थक । बम्बई विधान- परिषदके नामजद सदस्य, १८८२।