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पत्र: 'नेटाल एडवर्टाइजर' को



यूनियन जिस विचारधाराका प्रतिनिधित्व करती है उसके अनुसार दुनियाके सब महान धर्मो में समानता है और उन सबका एक ही स्रोत है। जैसा कि विज्ञापित पुस्तकोंसे भली-भाँति ज्ञात हो जायेगा, वह भौतिकवादकी पूर्ण अपर्याप्तता दिखाती है; और भौतिकवादका यह कथन कि उसने संसारको एक अभूतपूर्व सभ्यता प्रदान की है। शेखी बघारना है कहा जाता है, उसने मानव-जातिका सबसे बड़ा कल्याण किया है। परन्तु कहनेवाले लोग आसानीसे भूल जाते हैं कि उसकी सबसे बड़ी सिद्धि है — विनाशके भयानकतम अस्त्रोंका आविष्कार, अराजकताकी आतंकजनक वृद्धि, पूँजीपतियों और श्रमिकोंके बीच भयावह झगड़े और 'नामधारी' विज्ञानके नामपर निर्दोष, निर्वाक् प्राणियोंपर स्वच्छन्द और पैशाचिक क्रूरता।

तथापि अब प्रतिक्रियाके लक्षण भी दिखाई देने लगे हैं। थियोसॉफिकल सोसाइटी की प्राय: अनुपम सफलता और ईसाई धर्मगुरुओं द्वारा मनुष्यके अन्दर निहित पवित्रता या ईश्वरीय अंशका[१] शनैः-शनैः स्वीकार उस प्रतिक्रियाका परिचायक है। प्रोफेसर मैक्समूलरका अवतारवादको स्वीकार करना, जो इतने निर्णायक तरीकेसे 'परफेक्ट वे' में स्पष्ट किया गया है, उनका यह कथन कि यह विचारधारा इंग्लैंड तथा अन्य देशोंके विचारशील लोगोंके मनमें जड़ें पकड़ रही हैं और 'अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट'[१] का प्रकाशन — ये सब तो उस प्रतिक्रिया के और भी बड़े उदाहरण हैं। दक्षिण आफ्रिकामें ये पुस्तकें पाना सम्भव नहीं है, इसलिए इनके बारेमें मेरा ज्ञान इनकी समालोचनाएँ पढ़नेतक ही सीमित है। मेरा निवेदन है कि ये सब और ऐसे ही दूसरे भी बहुत-से तथ्य अचूक रूपसे बताते हैं कि जिन भौतिक वृत्तियोंने हमें इतनी क्रूरताकी हदतक स्वार्थी बना दिया है उनसे हटकर हम केवल ईसाकी ही नहीं, बल्कि बुद्ध, जरथुस्त और मुहम्मदकी भी शुद्ध शिक्षाओंकी ओर मुड़ रहे हैं। सभ्य जगत अब इनको झूठे पैगम्बर या अवतार कहकर नहीं पुकारता, बल्कि इनकी और ईसाकी शिक्षाओंको एक-दूसरेकी पूरक मानने लगा है।

खेद है कि मैं अभी अन्नाहार-सम्बन्धी पुस्तकोंका विज्ञापन नहीं कर सकता। गलतीसे वे पुस्तकें भारतको भेज दी गई हैं और उनके डर्बन पहुँचने में कुछ समय लगेगा। फिर भी मैं अन्नाहारके गुणोंके बारेमें एक महत्त्वकी बात बता दूँ। बुराईका साधन शराबखोरी से ज्यादा जोरदार दूसरा नहीं है और मैं यह कहने की अनुमति चाहता हूँ कि जो लोग शराबकी तलबसे पीड़ित रहते हैं, परन्तु उससे छुटकारा पानेके इच्छुक हैं, वे कमसे कम एक मासतक मुख्यतः ब्राउन ब्रेड, संतरों या अंगूरके आहारपर रहकर देखें। इससे उनकी शराबकी तलब पूरी तरह मिट जायेगी। मैंने स्वयं अनेक प्रयोग किये हैं और मैं साक्षी दे सकता हूँ कि मैं बिना मसालेके अन्नाहारपर, जिसमें बड़ी मात्रा में रसीले ताजे फल शामिल थे, कई दिनोंतक रहा हूँ और मुझे चाय, काफी, कोको और यहाँतक कि पानीकी भी जरूरत महसूस नहीं हुई। इसी कारण इंग्लैंडमें सैकड़ों लोग अन्नाहारी बन गये हैं और जो कभी पक्के पियक्कड़ थे उन्हें अब शराबकी बू भी नहीं रुचती। डाक्टर बी° डब्ल्यू° रिचर्डसनने अपनी पुस्तक 'फूड