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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


"उन्नीसवीं शताब्दी में प्रकाशित पुस्तकोंमें 'परफेक्ट वे' को हम सबसे अधिक ज्ञानपूर्ण और उपयोगी पुस्तक मानते हैं।" —'नॉस्टिक' (संयुक्त राज्य अमेरिका)

मो° क° गांधी
एजेंट, एसॉटरिक क्रिश्चियन यूनियन
तथा लंदन वेजिटेरियन सोसाइटी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल एडवर्टाइजर, २ -२-१८९५

 

५८. पत्र: 'नेटाल विटनेस' को[१]

डर्बन
२३ मार्च, १८९५

सेवा में
सम्पादक
'नेटाल विटनेस'

महोदय,

आपके २२ तारीखके अंक में मुस्लिम कानूनके एक मुद्देके सम्बन्धमें सर वॉल्टर रैग और श्री टैथमके बीचका वार्तालाप प्रकाशित हुआ है। उसपर मुझे भरोसा है, न्यायके हितमें आप मुझे कुछ विचार व्यक्त करनेका अवसर देंगे।

 
  1. १. नेटाल चिटनेसके २२-३-१८९५ के अंकमें निम्नलिखित रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी:
    श्री टैथमके कल सर्वोच्च न्यायालयमें अर्जी दी है कि हसन दावजीकी विला वसीयत जायदादके बारेमें अधिकारी (सर्वोच्च न्यायालयके 'मास्टर') की रिपोर्टकी पुष्टि कर दी जाये। उन्होंने कहा कि बैरिस्टर गांधीकी बनाई हुई बँटवारेकी तजवीज रिपोर्टमें शामिल कर ली गई है। यह तजवीज मुस्लिम कानूनके अनुसार की गई है।
    सर वॉल्टर रैग: इसमें बात सिर्फ इतनी ही है कि श्री गांधी मुस्लिम कानूनके बारेमें कुछ नहीं जानते। वे मुस्लिम कानूनसे उतने ही अपरिचित हैं, जितना कि कोई फ्रांसीसी। उन्होंने जो-कुछ कहा है, उसके लिए उन्हें किताबोंका सहारा लेना पड़ा होगा, जैसा कि आप भी कर सकते हैं। उनकी अपनी विशेष जानकारी कुछ नहीं है।
    श्री टैथमके कहा कि बँटवारेकी एक-एक तजवीज काजियों और श्री गांधीसे हासिल की गई है। इनके अलावा वह और किससे बनवाई जाती, मैं नहीं जानता। विशेषज्ञों के जो भी प्रमाण उपलब्ध थे उन सबकी छानबीन हमने कर ली है।
    सर वॉल्टर रैग: जो हिस्सा श्री गांधीके कथनानुसार मृत व्यक्तिके भाईको मिलना चाहिए वह, मुस्लिम कानूनके अनुसार गरीबोंके हिस्सेमें जाना चाहिए। श्री गांधी एक हिन्दू हैं और वे बेशक अपना धर्म जानते हैं, मगर मुस्लिम कानूनके बारेमें वे कुछ नहीं जानते।
    श्री टैथमके: सवाल यह है कि हम श्री गांधीका मत मानें या काजियोंका?
    सर वॉल्टर रैग: आपको काजियोंका मत मानना चाहिए। जब भाई साबित कर सके कि वह गरीबोंका प्रतिनिधित्व करता है तब उसे श्री गांधीके कथनानुसार चौबीसमें से पाँच हिस्सोंका हक मिलेगा।
    इसकी आलोचना करते हुए गांधीजीने उपर्युक्त पत्र लिखा था: