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६०. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधानसभाको[१]

[डर्बन
५ मई, १८९५ से पूर्व]

सेवामें

माननीय अध्यक्ष तथा सदस्यगण

विधानसभा, नेटाल

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले, नेटालवासी भारतीयोंका प्रार्थनापत्र नम्र निवेदन है कि,

हम इस उपनिवेशमें रहनेवाले भारतीयोंके प्रतिनिधियोंकी हैसियत से भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विधेयकके सम्बन्धमें आपकी माननीय विधानसभाकी सेवामें उपस्थित हो रहे हैं। उक्त विधेयक इस समय आपके विचाराधीन है।

प्रार्थियोंका सादर निवेदन है कि विधेयकके जिस अंशमें गिरमिटको फिरसे नया करने और उसे मंजूर न करनेवालोंपर कर लगानेकी व्यवस्था है, वह स्पष्टतः अन्यायपूर्ण, बिलकुल अनावश्यक और ब्रिटिश संविधानके मूलभूत सिद्धान्तोंका सीधा विरोधी है।

विधेयक अन्यायपूर्ण है, इसको सिद्ध करनेके लिए, प्रार्थियोंका निवेदन है कि बहुत कहने की जरूरत नहीं है। गिरमिटकी अधिकतम अवधिको पाँच वर्षसे अनिश्चित काल तक के लिए बढ़ा देना अपने-आपमें ही अन्यायपूर्ण है, क्योंकि इससे गिरमिटिया भारतीयोंके मालिकोंके सामने कठोर व्यवहार करने अथवा अत्याचार करनेका ज्यादा प्रलोभन पैदा होता है। उपनिवेशवासी मालिक लोग कितने भी दयालु क्यों न हों, वे रहेंगे तो हमेशा मनुष्य ही। और प्रार्थियोंके लिए यह बताना जरूरी नहीं कि जब मनुष्य स्वार्थकी प्रेरणासे काम करने लगता है तो उसका स्वभाव कैसा बन जाता है। इसके अलावा, प्रार्थी यह भी कहनेकी इजाजत चाहते हैं कि उपर्युक्त विधेयक बिलकुल एकतरफा है। उससे मालिकको तो प्रत्येक रियायत मिलती है, मगर मजदूरको बदले में लगभग कुछ भी नहीं मिलता।

प्रार्थियोंका निवेदन है कि विधेयक अनावश्यक है, क्योंकि उसके पेश किये जानेका कोई कारण मौजूद नहीं है। उसका उद्देश्य उपनिवेशको किसी आर्थिक विनाशसे बचाना नहीं, और न किसी उद्योगकी उन्नतिमें मदद करना ही है। उलटे, जिन उद्योगोंके लिए भारतीय मजदूरोंकी विशेष आवश्यकता थी, उन्हें अब किसी असाधारण सहायताकी आवश्यकता नहीं रही। इस बातको मंजूर किया जा चुका है और १०,००० पौंड सहायताकी व्यवस्था अभी गत वर्ष ही रद की गई है। इससे साफ है कि ऐसे कानूनकी कोई सच्ची जरूरत नहीं है।

 
  1. यह प्रार्थनापत्र नेटाल एडवर्टाइजरके ५ मई, १८९५ के अंकमें प्रकाशित हुआ था।