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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको


(३) राज्यमें उनकी जो चिन्ताजनक स्थिति है उसकी विवेचनामें उतरने के पहले प्रार्थी अत्यन्त आदरपूर्वक महानुभावको बताना चाहते हैं कि यद्यपि हमारा हिताहित दाँवपर चढ़ा था, हमसे पंच-फैसलेके बारेमें कभी एक बार भी सलाह नहीं की गई। हम यह भी बताना चाहते हैं कि जिस क्षण पंच-फैसलेका विषय छेड़ा गया था, उसी क्षण हमने पंच-फैसलेके सिद्धान्त और पंचके चुनाव दोनोंपर आपत्ति प्रकट की थी। आपत्ति जबानी तौरपर प्रिटोरिया स्थित ब्रिटिश एजेंटको सूचित कर दी गई थी। हम इस अवसरपर यह कह देना चाहते हैं कि ट्रान्सवालके भारतीयोंकी शिकायतोंके बारेमें जिन प्राथियोंको समय-समयपर ब्रिटिश एजेंट महोदयकी सेवामें उपस्थित होनेका मौका पड़ा है, उनसे वे सदैव अत्यन्त शिष्टतासे मिले हैं और उनकी बातें उन्होंने उतने ही ध्यानसे सुनी हैं। प्रार्थी महानुभावका ध्यान इस बातकी ओर भी आकर्षित करते हैं कि सम्राज्ञीके केपटाउन स्थित उच्चायुक्तके पास एक लिखित विरोधपत्र भी भेजा गया था। तथापि, इस विषयकी चर्चा करनेमें प्रार्थियोंकी इच्छा ऑरेंज फ्री स्टेटके विद्वान् मुख्य न्यायाधीशकी उच्चाशयता अथवा ईमानदारीपर आक्षेप करनेकी जरा भी नहीं है। वे सम्राज्ञीके अफसरोंकी बुद्धिमत्तापर भी कोई आक्षेप करना नहीं चाहते। विद्वान् मुख्य न्यायाधीशके भारतीय-विरोधी रुखसे प्रार्थी परिचित थे, अतएव उन्होंने सोचा, और अब भी उनका यही नम्र खयाल है कि न्यायाधीश महोदय जोरदार प्रयत्न करनेपर भी प्रश्नपर संतुलित विचार नहीं कर सकते थे, जो किसी भी मामलेको सही और उचित रूपसे समझनेके लिए बहुत जरूरी है। ऐसे उदाहरण मौजूद हैं कि पूर्व मामलोंका परिचय रखनेवाले न्यायाधीशोंने इस तरहके मामलोंका फैसला करनेसे अपने हाथ खींच लिए हैं क्योंकि उन्होंने सोचा कि कहीं वे पहलेसे जमी हुई धारणाओं अथवा पूर्वग्रहोंके कारण गलत निर्णय न कर डालें।

(४) सम्राज्ञी-सरकारकी ओरसे विद्वान् पंचको मामलेके सम्बन्ध में निम्नलिखित निर्देश दिया गया था :

पंचको स्वतंत्रता होगी कि वह सम्राज्ञी सरकार और दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य-सरकारकी ओरसे पेश किये गये दावोंमें से किसी एकके पक्षमें फैसला दे दे। वह उक्त अध्यादेशोंको विचाराधीन विषय सम्बन्धी खरीतोंके साथ पढ़कर उनपर भी अपनी समझके अनुसार उचित निर्णय देनेको स्वतन्त्र है।

(५) पंच-फैसला, पत्रोंमें जैसा प्रकाशित हुआ है, यों है :

(क) सम्राज्ञी-सरकार और दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके दावे खारिज किये जाते हैं। वे सिर्फ निम्नलिखित हद और अंशतक स्वीकार्य हैं, अर्थात् :
(ख) दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यको अधिकार है और वह बाध्य है कि भारतीय व्यापारियोंके प्रति व्यवहार करनेमें फोक्सराङ द्वारा १८८६ में संशोधित १८८५ के कानून सं° ३ को पूरा-पूरा अमलमें लाये। जो अन्य एशियाई व्यापारी ब्रिटिश प्रजाजन हों उनके साथ भी ऐसा ही किया जाये। शर्त यह है कि (किसी व्यक्तिके द्वारा या उसकी ओरसे आपत्ति उठाई जानेपर कि उसके
 

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