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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको

हाथ बँधे होते हैं और इस तरह के विचारोंकी गुंजाइश नहीं होती। अगर ट्रान्सवाल सरकारका ही पक्ष आखिरकार बहाल रखा गया तो जहाँतक व्यापारियोंका सम्बन्ध है, उसका अर्थ न सिर्फ उनका ही सर्वथा विनाश होगा, बल्कि ट्रान्सवाल और भारत दोनोंमें रहनेवाले और उनपर निर्भर करनेवाले उनके रिश्तेदारों और नौकरोंका भी सर्वनाश होगा। महानुभाव देखेंगे कि प्रार्थियोंके खिलाफ कुछ स्वार्थी लोगोंने गलत प्रचार किया है। अगर प्रार्थियोंको बिना किसी अपराधके, केवल उस प्रचारके ही कारण उनकी वर्तमान जगहों से खदेड़ दिया गया तो उनमें से कुछके लिए, जो लम्बे समय से ट्रान्सवालमें व्यापार कर रहे हैं, उदर-पोषणके नये स्थान खोजना और जीवन-निर्वाह करना बिलकुल असम्भव हो जायेगा।

(१०) प्रश्न बहुत गंभीर है, और बहुत अधिक हित दाँवपर हैं। इसलिए हम महानुभाव के विचारके लिए अपनी स्थितिका थोड़ा विस्तृत विवरण नीचे दे रहे हैं। हमारा नम्र अनुरोध है कि महानुभाव उसपर पूरा-पूरा ध्यान दें।

(११) १८८१ के[१] समझौतोंकी १४ वीं उपधाराका जो 'देशी लोगोंको छोड़कर शेष सबके हितोंका समान' रूपसे संरक्षण करती है, उल्लंघन दुर्भाग्यपूर्ण है और वह इस धारणासे किया गया है कि भारतीय आवश्यक स्वच्छताका पालन नहीं करते। यह धारणा गिने-चुने स्वार्थी लोगोंके गलत प्रचारके कारण बँधी है। १८८५ के तीसरे कानून- सम्बन्धी सारे पत्र-व्यवहारमें सम्राज्ञी सरकारने जोरोंके साथ कहा है कि जनताके स्वास्थ्य की दृष्टिसे भारतीयोंके लिए पृथक् गलियाँ भले ही निश्चित कर दी जायें, परन्तु उन्हें शहरोंके कुछ निश्चित भागोंमें ही व्यापार करनेके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। १८८५ के कानून ३ का कुछ दिनों जोरोंसे विरोध करनेके बाद तत्कालीन उच्चायुक्त सर एच° रॉबिन्सनने १८८६ के संशोधनका विरोध समेटते हुए अपने २६ सितम्बर, १८८६ के पत्र (ग्रीन बुक स° १, १८९४, पृष्ठ ४६) में कहा : यद्यपि संशोधित कानून अब भी लंदन-समझौतेकी[१] १४ वीं धाराका भंग करनेवाला है, महानुभावके इस मतके कारण कि वह 'जनताके स्वास्थ्यकी रक्षा' के लिए आवश्यक है, मैं सम्राज्ञी-सरकारको उसका और विरोध करनेकी सलाह नहीं दूंगा।" पंचके हाथों मामलेके सौंपे जाने तथा १८८५ के कानून ३ सम्बन्धी उल्लेखसे भी साफ यही मालूम होता है कि समझौतेसे हटने की अनुमति केवल स्वच्छता के कारणोंसे दी गई थी।

(१२) प्रार्थी अत्यन्त आदरके साथ किन्तु जोरदार शब्दोंमें इस मान्यताका विरोध करते हैं कि ऐसे समझौता-त्यागके लिए स्वच्छता-सम्बन्धी कारण मौजूद हैं। प्रार्थियोंको आशा है कि वे सिद्ध कर सकते हैं, ऐसे कोई कारण मौजूद नहीं हैं।

(१३) प्रार्थी इसके साथ डाक्टरोंके तीन प्रमाणपत्र नत्थी कर रहे हैं। ये प्रमाणपत्र स्वयंस्पष्ट हैं। इनसे मालूम होता है कि भारतीयोंके मकान स्वच्छताकी