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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको


(१८) ग्रीन बुकके पृष्ठ १९-२१ पर दी हुई दो अच्छी-खासी अर्जियोंमें सब एशियाइयोंको पृथक् कर देनेकी प्रार्थना की गई है। उनमें तमाम एशियाइयों, चीनियों आदिको समग्र रूपमें धिक्कारा गया है और इसी कारण उपर्युक्त बातें कहना बिलकुल जरूरी हो गया। पहली अर्जी में उन भयानक दुर्गुणोंको गिनाया गया है जो उसमें कहे अनुसार, चीनियोंमें विशेष रूपसे हैं। दूसरी अर्जीमें पहलीका उल्लेख करते हुए तमाम एशियाइयोंको शामिल कर लिया गया है, और उन्हें धिक्कारा गया है। इसमें चीनियों, कुलियों और अन्य एशियाइयोंकी खास तौरसे चर्चा करते हुए "इन लोगोंकी गन्दी आदतों और अनैतिक चरित्रसे उत्पन्न कोढ़, उपदंश तथा इसी तरहके अन्य घृणित रोगोंके कारण समाजके समक्ष उपस्थित खतरे" का उल्लेख किया गया है।

(१९) अधिक तुलनामें न उतरकर, और चीनियोंसे सम्बन्ध रखनेवाले प्रश्नमें न जाकर, प्रार्थी अत्यन्त बलपूर्वक निवेदन करते हैं कि जहाँतक प्रार्थियोंका सम्बन्ध है, उपर्युक्त आरोप पूर्णतः निराधार है।

(२०) स्वार्थी आन्दोलनकारी कहाँतक गये हैं, यह बतानेके लिए प्रार्थी नीचे एक प्रार्थनापत्रका अंश उद्धृत करते हैं। यह प्रार्थनापत्र ऑरेंज फ्री स्टेटकी संसदको दिया गया था। इसकी एक नकल प्रिटोरिया व्यापार संघकी सम्मतिसे ट्रान्सवाल सरकारको भेजी गई थी :

ये लोग पत्तियों या स्त्री-सम्बन्धियोंके बिना राज्यमें आते हैं, इसलिए परिणाम स्पष्ट है। इनका धर्म इन्हें सब स्त्रियोंको आत्मारहित और ईसाइयोंको स्वाभाविक शिकार मानना सिखाता है — । (ग्रीन बुक सं° १, १८९४, पृ° ३०)।

(२१) प्रार्थी पूछते हैं कि क्या भारतके महान् धर्मोपर इससे भी ज्यादा निरंकुश कोई लांछन, या भारत राष्ट्रका इससे भी बड़ा कोई अपमान हो सकता है?

(२२) उल्लिखित 'ग्रीन बुक्स' से दीख पड़ेगा कि भारतीयोंके खिलाफ मामला तैयार करने में इसी तरहके कथनोंका उपयोग किया गया है।

(२३) सच्चा और एकमात्र कारण हमेशा छिपाया गया है। प्राथियोंको लाचार करने या उनके सम्मानके साथ जीविका उपार्जित करनेके मार्ग में हर प्रकारकी बाधा डालनेका एकमात्र कारण व्यापारिक ईर्ष्या है। सारीकी सारी जिहाद प्रायः उन्हीं प्राथियोंके विरुद्ध है जो व्यापारी हैं। वे अपनी होड़से और अपनी मितव्ययी आदतोंके कारण जीवनकी आवश्यक वस्तुओंके भाव घटाने में समर्थ हुए हैं। यह यूरोपीय व्यापारियोंके अनुकूल नहीं पड़ता। वे तो भारी मुनाफा कमाना चाहते हैं। भारतीयोंकी आदतें सीधी-सादी हैं। इसलिए वे थोड़े-से लाभसे सन्तुष्ट रहते हैं। उनके विरुद्ध आन्दोलनका एकमात्र कारण यही है। दक्षिण आफ्रिकामें हर कोई इसे भलीभाँति जानता है। दक्षिण आफ्रिकाके पत्रोंसे भी जाना जा सकता है कि बात ऐसी ही है। वे कभी-कभी स्पष्ट कहकर द्वेषभावको सच्चे रूप में प्रकट कर देते हैं। भारतीयोंके प्रश्नको तिरस्कारके साथ 'कुलियोंका प्रश्न' कहा जाता है। उसकी चर्चा करते