हुए और यह बतानेके बाद कि सच्चा 'कुली' दक्षिण आफ्रिकाके लिए अनिवार्य है, नेटाल एडवर्टाइजर 'ने १५ सितम्बर, १८९३ के अंकमें ये उद्गार व्यक्त किये थे :
(२४) और भी, ट्रान्सवाल सरकारके मुखपत्र 'प्रेस' ने इस प्रश्नकी विवेचना करते हुए लिखा है : "अगर एशियाई आक्रमण समयपर न रोका गया तो यूरोपीय दूकानदारोंको गरदनियाँ दे दी जायेंगी, जैसा कि नेटालमें और केप कालोनीके अनेक भागों में हुआ है।" यह पूराका-पूरा लेख बड़ा मनोरंजक है और दक्षिण आफ्रिकामें गैर-गोरे लोगोंके प्रति यूरोपीयोंकी भावनाओंका यह एक अच्छा नमूना है। यद्यपि इसका साराका-सारा रुख ही होड़से पैदा हुए भयका सूचक है, फिर भी यह हिस्सा लाक्षणिक है :
(२५) और फिर भी, इसके साथ संलग्न प्रमाणपत्रमें डा° वीलने अपना समझा बूझा अभिप्राय यह दिया है कि "निम्नतम वर्गके भारतीय निम्नतम वर्गके यूरोपीयोंकी अपेक्षा ज्यादा अच्छे ढंगसे, ज्यादा अच्छे मकानोंमें और सफाईकी व्यवस्थाका ज्यादा खयाल करके रहते हैं।" (परिशिष्ट क)
(२६) इसके अलावा, उक्त डाक्टरने लिखा है कि प्रत्येक राष्ट्रके एक या अधिक रोगी तो कभी न कभी संक्रामक रोगोंके अस्पतालमें रहे, परन्तु भारतीय कभी एक भी नहीं रहा। जोहानिसबर्गके दो डाक्टरोंके प्रमाणपत्र इस आशयके भी हैं कि भारतीय अपनी ही स्थितिके यूरोपीयोंकी अपेक्षा किसी कदर ओछे नहीं हैं। (परिशिष्ट ख और ग)
(२७) अपने पक्षका और भी प्रमाण देनेके लिए प्रार्थी १३ अप्रैल, १८८९ के 'केप टाइम्स' के एक अग्रलेखका अंश उद्धृत कर रहे हैं। उसमें भारतीयोंके पक्षको यथेष्ट न्यायके साथ पेश किया गया है :
भारतीयोंके बारेमें एक अन्य पत्रके प्रशंसायुक्त वर्णनका उद्धरण देनेके बाद लेखमें कहा गया है :