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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
प्रजाजन हैं और वे उतने ही न्यायके साथ उन्हीं स्वतन्त्रताओं और अधिकारों-का दावा करते हैं। अगर पामर्स्टनके जमानेके एक वाक्यांशका प्रयोग किया जा सके, तो कमसे-कम यह कहना होगा कि, जो अधिकार कोई दूसरेको देनेके लिए तैयार न हो, उनपर अपना दावा जताना ब्रिटिश स्वभावके बहुत विपरीत है। एलिजाबेथ-कालीन एकाधिकार जबसे मिटे, तबसे सबको व्यापारका समान अधिकार प्राप्त हो गया है और यह ब्रिटिश संविधानका एक अंग-सा बन गया है। अगर कोई इस अधिकारमें हस्तक्षेप करे तो ब्रिटिश नागरिकता के विशेषाधिकार एकाएक उसके आड़े आ जायेंगे। भारतीय व्यापारी स्पर्धामें अधिक सफल हैं और वे अंग्रेज व्यापारियोंको अपेक्षा कममें गुजारा कर लेते हैं — यह तर्क सबसे कमजोर और सबसे अन्यायपूर्ण है। ब्रिटिश वाणिज्यकी नींव ही दूसरे देशोंके साथ अधिक सफलतापूर्वक स्पर्धा करनेकी शक्तिपर रखी गई है। जब अंग्रेज व्यापारी चाहते हैं कि सरकार उनके प्रतिद्वन्द्वियोंके अधिक सफल व्यापार के खिलाफ हस्तक्षेप करके उन्हें संरक्षण प्रदान करे, तब तो सच-मुच संरक्षण पागलपनकी हद तक पहुँच जाता है। भारतीयोंके प्रति अन्याय इतना स्पष्ट है कि अपने ही देशभाइयोंको इन लोगों के साथ सिर्फ इसलिए आदिवासियोंके जैसा व्यवहार करनेकी कामना करते देखकर कि ये सफल व्यापारी हैं, शर्म आती है। वे प्रबल जातिके मुकाबलेमें इतने सफल हुए हैं, केवल यह कारण ही उन्हें उस अपमानजनक स्तरसे ऊपर उठा देनेके लिए पर्याप्त है। . . . जिन लोगोंको समाचारपत्र, डच और हताश दुकानदार 'कुली' कहकर पुकारते हैं उनसे भारतीय व्यापारी कोई बड़ी चीज हैं — यह बतानेके लिए इतना ही कहना काफी होगा।

(२८) उपर्युक्त उद्धरणसे यह भी दीख पड़ेगा कि यूरोपीयोंकी भावना स्वार्थसे अंधी न होनेपर भारतीयोंके विरुद्ध नहीं होती। परन्तु चूंकि उपर्युक्त ग्रीन बुक्स में सर्वत्र जोर दिया गया है कि राज्यके नागरिक[१] और यूरोपीय निवासी दोनों ही भारतीयोंके विरोधी हैं, इसलिए प्रार्थी दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके माननीय अध्यक्षके पास दो प्रार्थनापत्र भेज रहे हैं। एक प्रार्थनापत्रमें बताया गया है कि नागरिकोंकी एक बहुत बड़ी संख्या न केवल भारतीयोंके ट्रान्सवालमें स्वतन्त्रतापूर्वक निवास तथा व्यापार करनेकी विरोधी नहीं है, बल्कि यदि इन त्रासदायक कानूनोंका आखिरी परिणाम उनका राज्य छोड़कर चले जाना हुआ, तो वे लोग इसे एक संकट मानेंगे। (परिशिष्ट ङ) दूसरे प्रार्थनापत्रपर यूरोपीयोंने हस्ताक्षर किये हैं। उसमें बताया गया है कि हस्ताक्षर-कर्त्ताओंके मतसे, भारतीयोंकी स्वच्छता-सम्बन्धी आदतें यूरोपीयोंकी आदतसे किसी कदर हीन नहीं हैं और भारतीयोंके विरुद्ध आन्दोलनका कारण व्यापारिक ईर्ष्या-द्वेष है। (परिशिष्ट च) परन्तु यदि बात उलटी होती — अगर

 
  1. बर्गर।