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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको परिशिष्ट च


परिशिष्ट च

सेवामें
श्रीमान् अध्यक्ष
दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य
प्रिटोरिया

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले, गणराज्यके यूरोपीय निवासी भारतीय-विरोधी आन्दोलनका विरोध करते हैं। यह आन्दोलन भारतीयोंको इस देशमें स्वतन्त्रतापूर्वक रहने और व्यापार करने न देनेके उद्देश्यसे कुछ स्वार्थी लोगोंने छेड़ा है।

जहाँतक हमारे अनुभवका सम्बन्ध है, हमें विश्वास है कि भारतीयोंकी स्वच्छता-सम्बन्धी आदतें यूरोपीयोंकी आदतोंसे किसी प्रकार हीन नहीं हैं। और उनके बीच — खास तौरसे भारतीय व्यापारियों के बीच — छुतहे रोगोंके प्रसारके बारेमें कही गई बातें निश्चय ही बेबुनियाद हैं।

हमारा दृढ़ विश्वास है कि आन्दोलनका मूल उनकी स्वच्छता-सम्बन्धी आदतें नहीं, बल्कि व्यापार-सम्बन्धी ईर्ष्या है। कारण यह है कि अपने मितव्ययी रहन-सहन और संयमी आदतोंके कारण वे जीवनकी आवश्यक वस्तुओंके भाव सस्ते रखते हैं। इस तरह वे राज्यके गरीब लोगों के लिए अतुल वरदानरूप सिद्ध हुए हैं।

हम नहीं मानते कि उन्हें पृथक् क्षेत्रोंमें रहने या वहीं व्यापार करनेके लिए बाध्य करनेका कोई भी मजबूत कारण मौजूद है।

इसलिए हम नम्रतापूर्वक श्रीमान् से अनुरोध करते हैं कि ऐसा कोई कानून न तो मंजूर किया जाये न बरदाश्त ही किया जाये, जिसका मंशा उनकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगाना हो, और जिसके परिणामस्वरूप अन्ततः वे गणराज्य छोड़कर चले जायें। यह परिणाम उनकी जीविकाके साधनोंपर ही आघात करनेवाला होगा और, इसलिए, हमारा नम्र निवेदन है, एक ईसाई देशमें आत्मसन्तोषके साथ इसका खयाल नहीं किया जा सकता।[१]

 

परिशिष्ट छ

मेरा नाम हाजी मुहम्मद हाजी दादा है। हाजी मुहम्मद हाजी दादा ऐंड कम्पनी, मर्चेट्स, डर्बन, प्रिटोरिया, डेलागोआ-बे आदिका प्रबन्धक और बड़ा साझेदार हूँ। में शपथपूर्वक कहता हूँ कि :—

(१) सन् १८९४ में किसी समय में घोड़ागाड़ी द्वारा जोहानिसबर्ग से चार्ल्सटाउन जा रहा था।

 
  1. उपर्युक्त प्रार्थनापत्र अंग्रेजी और आफ्रिकन, दोनों भाषाओंमें छपा है। फाइल की हुई प्रतिमें प्रार्थियोंके हस्ताक्षर नहीं हैं।

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