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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको

बहुत दूरके स्थानोंमें हट जानेका आदेश दे दिया जायेगा; वे केवल उन्हीं स्थानों में निवास तथा व्यापार कर सकेंगे; और वे ९ बजे रातके बाद अपने घरोंसे निकल नहीं सकते। इतना बतानेके बाद उस अजनवीसे कहा जाये कि अनुमान लगाओ, इन खास निर्योग्यताओंका कारण क्या होगा, तो क्या वह ऐसा निष्कर्ष न निकालेगा कि वे लोग बिलकुल गुंडे, अराजक और राज्य तथा समाजके लिए राजनीतिक दृष्टिसे खतरनाक होंगे? इसपर भी प्रार्थी महानुभावको विश्वास दिलाते हैं कि जो भारतीय उपर्युक्त सब निर्योग्यताओंके अधीन जीवन-यापन कर रहे हैं वे न तो गुंडे हैं और न अराजक हैं। उलटे, वे दक्षिण आफ्रिकाके और खासकर दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके सबसे ज्यादा शान्तिप्रिय और कानूनका पालन करनेवाले लोगोंमें हैं।

प्रमाण यह है कि जोहानिसबर्ग में यूरोपीय समाजके ऐसे लोग हैं, जो राज्यके लिए सच्चे खतरेके हेतु बने हुए हैं और हाल ही में जिनकी अपनी प्रवृत्तियोंसे पुलिस-बलमें वृद्धि करना आवश्यक हो गया है और खुफिया विभागपर बहुत भार लाद दिया गया है; परन्तु भारतीय समाजने इन विषयोंमें राज्यको चिन्ताका कोई कारण नहीं दिया।

इसके समर्थनमें प्रार्थी आपका ध्यान सारे दक्षिण अफ्रिकाके अखबारोंकी ओर आकर्षित करते हैं।

जिस सक्रिय आन्दोलनसे भारतीयोंकी वर्तमान हालत हुई है उसमें भी भारतीयों पर इस प्रकारके आरोप मढ़ने की इच्छा नहीं की गई।

भारतीयोंपर केवल एक आरोप लगाया गया है कि वे समुचित स्वच्छताका पालन नहीं करते। प्राथियोंका विश्वास है कि परमश्रेष्ठ परममाननीय लॉर्ड रिपनको भेजे गये निवेदनमें इस आरोपको पूर्णतः निराधार सिद्ध किया जा चुका है। फिर भी यदि मान लिया जाये कि आरोप में कुछ आधार है ही, तो भी स्पष्ट है कि वह भारतीयोंको अचल सम्पत्ति रखने, या देशमें स्वेच्छा तथा स्वतन्त्रताके साथ घूमने-फिरनेसे रोकनेका कारण नहीं हो सकता। वह भारतीयोंपर साढ़े तीन पौंडका विशेष भुगतान लादनेका कारण भी नहीं हो सकता।

यह कहा जा सकता है कि अब तो दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यकी सरकारने कतिपय कानून मंजूर कर लिये हैं। ऑरेंज फ्री स्टेटके मुख्य न्यायाधीशने अपना निर्णय भी दे दिया है और, उस निर्णय से सम्राज्ञी सरकार बंधी हुई है।

प्रार्थियोंकी नम्र मान्यता है कि साथके कागजातमें इन आपत्तियोंका जवाब दिया जा चुका है। लंदन समझौता सम्राज्ञीकी सब प्रजाओंके अधिकारोंका विशेष रूपसे संरक्षण करता है। यह एक माना हुआ सत्य है। सम्राज्ञी सरकारने समझौतेसे विलग होने और पंच-फैसला करानेकी अनुमति स्वच्छता के आधारपर दी थी। और प्राथियोंको बताया गया है कि समझौतेकी इस प्रकार अवहेलना करनेकी अनुमति महानुभावके पूर्वाधिकारीसे परामर्श किये बिना ही दी गई थी। इस तरह, जहाँतक भारत सरकारका सम्बन्ध है, प्रार्थियोंका निवेदन है, वह अनुमति बन्धनकारक नहीं है। यह तो स्वयंस्पष्ट है कि भारत सरकारसे परामर्श किया जाना चाहिए था। और अगर महानुभावका इरादा वर्तमान अवस्थामें और केवल इसी आधारपर प्रार्थियोंकी ओरसे हस्तक्षेप