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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेका न हो तो प्रार्थियोंका निवेदन है कि जिन कारणोंसे यह अनुमति दी गई वे न तो तब मौजूद थे, न अब मौजूद हैं। वास्तवमें सम्राज्ञी सरकारको गलतबयानी द्वारा गुमराह किया गया है, इसलिए ये बातें महानुभावसे हस्तक्षेपकी प्रार्थना करनेके लिए और महानुभाव द्वारा उस प्रार्थनाको मान्य करनेके लिए काफी औचित्य रखती हैं।

और इसमें निहित समस्याएँ इतनी महत्त्वपूर्ण और इतनी साम्राज्यव्यापी हैं। कि प्रार्थियोंने स्वच्छता-सम्बन्धी आरोपका जो कड़ा किन्तु आदरपूर्ण विरोध किया है उसकी दृष्टिसे पूरी जाँचके बिना इस प्रश्नका ऐसा निबटारा नहीं किया जा सकता जिससे दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यवासी ब्रिटिश भारतीय प्रजाजनोंपर अन्याय न हो।

महानुभावका मूल्यवान समय और अधिक लिये बिना प्रार्थी फिरसे अनुरोध करते हैं कि महानुभाव इसके साथके कागजातपर पूरा ध्यान दें। अन्तमें, प्रार्थी सच्चे दिलसे आशा करते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीय ब्रिटिश प्रजाजनोंको महानुभावका संरक्षण उदारतापूर्वक प्रदान किया जायेगा।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी सदैव दुआ करेंगे, आदि।[१]

अंग्रेजी (एस° एन° ४५१) की फोटो-नकलसे।

 

६३. पत्र : मु° का° कमरुद्दीनको

पोस्ट बॉक्स ६६
डर्बन, नेटाल
५ मई, १८९५

प्रिय श्री मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन,

आपकी ओरसे भारतीयोंकी सहियाँ मिलीं। डचोंकी सहियाँ लेकर तुरन्त प्रिटोरिया भिजवा दी होंगी। यह काम बहुत जरूरी है, इसलिए इसमें ढील नहीं होनी चाहिए। मैंने प्रिटोरियाको तार भी किया है कि डचोंकी अर्जीकी नकल वहाँ भेजें। यह सब काम बुधवार तक समाप्त हो जाना चाहिए। क्या किया है, सो समाचार विस्तारसे लिखें।

सब हिन्दुस्तानियोंके इसमें मेहनत करनेकी पूरी जरूरत है। नहीं तो पीछे पछताना होगा।[२]

आपका हितैषी,
मोहनदास गांधी

गुजराती (एस° एन° ३१७) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इस प्रार्थनापत्रका भी कोई असर नहीं पड़ा। दादाभाई नौरोजी २९ अगस्तको कलोनियल ऑफिस में चेम्बरलेन से मिलने एक शिष्टमण्डल लेकर गये, जिसने दक्षिण आफ्रिकाके चार राज्यों में बसने वाले भारतीयोंका मामला पेश किया।
  2. कमरुद्दीनने ८ मईको उत्तरमें लिखा था (एस° एन° ३९) कि वह लॉर्ड रिपनको पेश किये जानेवाले प्रार्थनापत्र पर एक भी व्यक्ति के हस्ताक्षर नहीं करा सके थे।