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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे आश्रमोंकी संख्या कोई बारह होगी। उनमें से अधिकतर नेटालमें हैं। उनमें कुल मिलाकर लगभग ३०० पुरुष और १२० स्त्री व्रतधारी हैं।

इस तरहके हैं हमारे नेटालके अन्नाहारी। उन्होंने अन्नाहारको धर्म नहीं बनाया। उसका आधार वे सिर्फ इस बातको मानते हैं कि अन्नाहारसे स्थूल शरीरका दमन करने में सहायता मिलती है। शायद वे अन्नाहार-मण्डलोंके अस्तित्व से भी अभिज्ञ नहीं हैं और अन्नाहार-सम्बन्धी किसी साहित्यको पढ़नेकी परवाह भी न करेंगे। फिर भी, इस टोलीके साथ एक सांयोगिक समागमसे मनुष्यका हृदय प्रेम, उदारता और आत्मत्यागकी भावना से ओतप्रोत हो जाता है। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अन्नाहारकी विजयका सजीव प्रमाण है। ऐसी हालत में, वह कौन-सा अन्नाहारी है, जो इस उदात्त टोलीपर अभिमान से सिर ऊँचा न कर लेगा? मैं व्यक्तिगत अनुभवसे जानता हूँ कि आश्रमकी यात्रा करनेके लिए लंदनसे नेटाल तककी यात्रा भी ज्यादा न होगी। आश्रम-यात्रा मनपर चिरस्थायी पवित्र प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकती। भले ही कोई प्रोटेस्टेंट, ईसाई, बौद्ध, या कुछ भी क्यों न हो, आश्रमको देखनेके बाद यह उद्गार निकाले बिना नहीं रह सकता कि "अगर रोमन कैथोलिक पंथ यही है, तो इसके विरुद्ध कही गई प्रत्येक बात झूठ है।" मेरा खयाल है, इससे निर्णायक रूपमें सिद्ध हो जाता है कि किसी भी धर्मको उसके पालन करनेवाले अपने आचरणसे जैसा दिखाते हैं, वैसा ही वह दैवी अथवा शैतानी होता है।

[अंग्रेजीसे]
वेजिटेरियन, १८-५-१८९५

 

६५. 'नेटाल एडवर्टाइजर' को लिखे पत्रके अंश[१]

[२२ मई, १८९५ से पूर्व]

विवरण में कहा गया है कि "भारतीय लकड़ीके कुन्दोंके टुकड़े उठाकर ले जाते पाये गये।"[२] साक्ष्य था कि . . . [३] "जिन सातको पकड़ा गया वे सिरपर कुन्दोंके टुकड़ोंके साथ. . . . [३] भी उठाए हुए थे। कुन्दे लाकर दिखानेको कहा गया, किन्तु उन्हें अदालत में पेश किया ही नहीं गया। विवरणमें कहा गया है कि उन्हें पकड़नेका

 
  1. नेटाल एडवर्टाइजरके २०-५-१८९५ के अंक में प्रकाशित एक विवरणकी अशुद्धिओं का उल्लेख करते हुए गांधीजीने एक लम्बा पत्र लिखा था। मूल पत्र उपलब्ध नहीं है। २२-५-१८९५ के एडवर्टाइजरमें प्रकाशित पत्रके उद्धरण यहाँ दिये जा रहे हैं।
  2. विवरणके अनुसार बहुतसे भारतीय रेलके बाड़ेसे लकड़ीके कुन्दोंके टुकड़े ले जाते पाये गये थे। इससे पूर्व अधिकारियोंने उन्हें जलानेके लिए लकड़ीके स्थानपर कोयला देनेकी आज्ञा दी थी। इसका उन्होंने विरोध किया था।
  3. ३.० ३.१ यहाँ कुछ शब्द अस्पष्ट हैं।,